स्वर-सुधा के सरताज हैं राहुल जोशी, पूर्वोत्तर की घाटियों व वादियों में कराते हैं मरुधरा की सोंधी खुशबू का एहसास

थर्ड आई न्यूज

तूलिका : शंकर बिड़ला

संगीत वह दिव्य साधना है, जो दिलों की दूरी मिटाकर आत्माओं को जोड़ देती है। इसी सुरों की दुनिया में अपनी अनूठी पहचान बनाने वाले नाम हैं – राहुल जोशी, जो अपनी सुरीली आवाज़ और मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति से पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक मंचों पर राजस्थानी लोकगीतों की मिठास घोल रहे हैं। वे न केवल एक कुशल गायक हैं, बल्कि अपनी संस्कृति के सच्चे संवाहक और सुरों के अद्वितीय साधक भी हैं।

पूर्वोत्तर में राजस्थान के सुरों की गूंज :
राहुल जोशी ने अपने समर्पण और लगन के बल पर सुदूर पूर्वोत्तर भारत में राजस्थानी लोकगीत और संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। उन सुदूर पहाड़ियों और घाटियों में, जहां राजस्थान की रेत का स्पर्श कभी नहीं हुआ, वहां उन्होंने अपनी मधुर गायकी के जरिए थार के सुरों को जीवंत कर दिया है। उनकी प्रस्तुतियों में न केवल संगीत की मिठास होती है, बल्कि राजस्थान की संस्कृति, परंपरा और रंगों की खूबसूरत झलक भी देखने को मिलती है।

फागुन के महीने में जब वे राजस्थानी वाद्य यंत्र चंग यानी ढप की थाप पर होली के श्रृंगार रस में सराबोर गीत गाते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो राजस्थान की गलियों की फाग पूर्वोत्तर के आंगन में उतर आई हो। उनके गीतों की सुरमयी धुन पर श्रोता स्वतः झूमने और नाचने को विवश हो जाते हैं।

कड़ी मेहनत से रचा मुकाम :
काफी कम समय में राहुल जोशी ने असम सहित समूचे पूर्वोत्तर में गायकी के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है। वे सिर्फ गायक नहीं, बल्कि राजस्थानी लोकसंगीत के राजदूत बन चुके हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से इस क्षेत्र में एक नई सांस्कृतिक सेतु का निर्माण किया है। उनकी सधी हुई आवाज़, मंच पर आत्मविश्वास और प्रस्तुतियों में समाहित ऊर्जा उन्हें अन्य कलाकारों से अलग करती है।

जोश, जुनून और जज्बे की मिसाल :
राहुल जोशी की सबसे खास बात है उनका अटूट जोश और अदम्य जज्बा। वे बिना रुके, कई-कई घंटे तक एक ही उत्साह और ऊर्जा के साथ होली के पारंपरिक गीतों की सरिता बहा सकते हैं। उनकी गायकी में वह सजीवता है, जो सुनने वालों को गीत के हर शब्द में डुबो देती है। मंच पर उनकी उपस्थिति मात्र ही माहौल को जीवंत कर देती है, और श्रोता उनके साथ सुरों के इस सफर में बह जाते हैं।

संस्कृति के सच्चे संवाहक :
पूर्वोत्तर भारत में राजस्थानी संगीत और संस्कृति को स्थापित करना आसान कार्य नहीं था, लेकिन राहुल जोशी ने अपनी प्रतिभा, समर्पण और अथक परिश्रम के बल पर इसे संभव कर दिखाया। मां कामाख्या की धरती पर उन्होंने रंगीलो राजस्थान के सुरों को इस खूबसूरती से प्रस्तुत किया है कि लोग न केवल उनके गीतों के, बल्कि राजस्थानी संस्कृति के भी दीवाने हो गए हैं।

उनकी हर प्रस्तुति में संगीत की मिठास के साथ राजस्थान की आत्मा भी झलकती है। वे अपने गीतों के माध्यम से न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि अपनी जड़ों, अपनी परंपराओं और अपनी संस्कृति का गौरवपूर्ण परिचय भी कराते हैं।

सुरों के सिपाही का उज्ज्वल भविष्य :
राहुल जोशी आज जिस मुकाम पर हैं, वह उनकी निरंतर साधना और संगीत के प्रति असीम समर्पण का प्रतिफल है। वे न केवल एक उत्कृष्ट गायक हैं, बल्कि अपने हर प्रदर्शन से दिलों में अमिट छाप छोड़ जाने वाले सच्चे कलाकार भी हैं। उनका स्वर-संगीत इस बात का प्रमाण है कि जब जुनून और प्रतिभा साथ चलते हैं, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं रहती।

“राहुल जोशी, तुम जियो हजारों साल! तुम्हारी आवाज़ की गूंज, तुम्हारे गीतों का जादू और तुम्हारे सुरों की मिठास यूं ही सबको मोहित करती रहे। रंगीलो राजस्थान तुम्हारे सुरों के माध्यम से सदैव चहके और महके!”

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