रामराज्य की झलक के साथ हुआ श्रीराम कथा का पावन विश्राम, भावविभोर हुए श्रद्धालु

थर्ड आई न्यूज़
गुवाहाटी, 6 अगस्त।
राममय वातावरण, भक्तिभाव से भरे अंत:करण और प्रभु श्रीराम के जयघोषों के बीच आज माहेश्वरी भवन में श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ का भव्य विश्राम हुआ। कथा के अंतिम दिवस में रामसेतु निर्माण, रावण युद्ध, मेघनाद का वध, कुम्भकरण मोक्ष, लक्ष्मणजी का नागपाश में बंधना, संजीवनी लाने की प्रेरक कथा से लेकर रामराज्याभिषेक तक के प्रसंगों का दिव्य चित्रण हुआ, जिसने भक्तों को भावविभोर कर दिया।
सजीव झांकी के माध्यम से लंका विजय और प्रभु श्रीराम की अयोध्या वापसी के साथ राज्याभिषेक की अद्वितीय झलक प्रस्तुत की गई। सजी धजी अयोध्या की दृश्यावली, पुष्पवर्षा, मंगल घोष और भावपूर्ण संगीत ने ऐसा वातावरण रच दिया जैसे स्वयं त्रेता युग की पुनरावृत्ति हो रही हो। कथा की समापन बेला में उपस्थित प्रत्येक श्रद्धालु के नेत्रों में भक्ति के अश्रु और हृदयों में प्रभु चरणों में समर्पण का भाव स्पष्ट रूप से झलक रहा था।
कथा विश्राम के उपरांत विधिवत हवन, पूर्णाहुति तथा महाप्रसाद का आयोजन हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने प्रभु की कृपा के प्रति आभार प्रकट करते हुए आहुतियाँ अर्पित कीं और प्रसाद ग्रहण किया।

माहेश्वरी सभा के अध्यक्ष सीताराम बिहानी ने भावुक होकर कहा कि यह कथा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रभु श्रीराम की कृपा का सजीव प्रस्फुटन था। उन्होंने कहा कि जहां श्रीराम कथा होती है, वहां हनुमानजी महाराज की अदृश्य उपस्थिति अवश्य होती है — और इस कथा में भी उनका आशीर्वाद हर क्षण अनुभव हुआ। कथा में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा का न आना, भक्तों की सहज उपस्थिति और अध्यात्म से ओतप्रोत वातावरण स्वयं इस बात का प्रमाण है कि यह आयोजन ईश्वरीय संकल्प से ही सम्पन्न हुआ।
श्री बिहानी ने कथा से जुड़े सभी सहयोगियों — चाहे वे मंच पर रहे हों या पृष्ठभूमि में — को भगवान का निमित्त बताते हुए कहा कि यह सेवा केवल आयोजन की नहीं, बल्कि ईश्वर के कार्य की थी, जिसे प्रभु ने स्वयं चुना और सम्पन्न करवाया।
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह कृपा नित्य बनी रहेगी और श्रीराम कथा का यह पुण्य प्रवाह प्रत्येक वर्ष और अधिक भावगर्भित रूप में समाज को आलोकित करता रहेगा। सभा की ओर से उन्होंने सभी श्रद्धालुओं, सहयोगियों एवं धर्मप्रेमियों का भावपूर्ण साधुवाद प्रकट किया।
इस प्रकार, प्रभु श्रीराम की जीवनगाथा के पावन श्रवण के साथ श्रद्धा, समर्पण और भक्ति की भावधारा में बहता हुआ यह दिव्य आयोजन अपनी संपूर्णता को प्राप्त कर श्रीराम चरणों में अर्पित हो गया।