ट्रंप-मोदी में दोस्ती पर बात: भारत-US के रिश्तों में तल्खी लाए अमेरिकी राष्ट्रपति, कैसे कर रहे सुधार की कोशिश?

थर्ड आई न्यूज

नई दिल्ली I अमेरिका और भारत के बीच बीते कई वर्षों से कूटनीतिक रिश्ते जबरदस्त स्तर पर रहे। दोनों ही देशों ने 2002 के बाद से न सिर्फ व्यापार में बढ़ोतरी दर्ज की, बल्कि रक्षा समझौतों से लेकर आर्थिक समझौतों पर भी मुहर लगाई। हालांकि, यह पूरी स्थिति इस साल जुलाई के बाद कुछ हद तक बदली नजर आई है। पहले ट्रंप की तरफ से भारतीय उत्पादों के खिलाफ 25 फीसदी टैरिफ और फिर रूस से तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त जुर्माना लगाए जाने के बाद रिश्ते निचले स्तर पर हैं। इस बीच खुद राष्ट्रपति ट्रंप, उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो, वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक की तरफ से दिए बयानों ने संबंधों को और बिगाड़ने का काम किया है।

भारत की तरफ से ट्रंप प्रशासन की इस कार्रवाई और नेताओं के बयानों पर आपत्ति जताई गई है। हालांकि, इस विषय में कोई कदम नहीं उठाया गया। इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेकर संकेत दिया कि भारत की गुटनिरपेक्ष रहने वाली नीति अभी भी बरकरार है। मोदी के इस दौरे के बाद से ही राष्ट्रपति ट्रंप के रवैये में नरमी देखी गई है। उनके एक के बाद एक पोस्ट और मीडिया में दिए बयानों से यह साफ झलकता है। ऐसे में जब शुक्रवार को उन्होंने कहा कि मैं हमेशा मोदी का दोस्त रहूंगा और भारत-अमेरिका के विशेष रिश्ते हैं तो यह साफ हो गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति अब भारत से समझौता करने की कोशिश में हैं।

इस बीच यह जानना अहम है कि आखिर बीते दिनों में ऐसा क्या हुआ कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में तनाव पैदा हो गया? खुद ट्रंप इस तल्खी के लिए कैसे और किस हद तक जिम्मेदार रहे? उनके मंत्री और सलाहकारों के बीते दिनों में ऐसा क्या किया कि स्थितियां बेहतर होने की जगह और बिगड़ गईं? भारत की इस पर क्या प्रतिक्रिया रही है और क्यों ट्रंप ने एक बार फिर मोदी से दोस्ती की बात दोहराई है? आइये जानते हैं…

पहले जानें- क्यों पैदा हुआ भारत-अमेरिका के रिश्तों में तनाव?

  1. अमेरिका का अचानक टैरिफ लगाने का फैसला
    डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को जब अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो भारत उन पहले देशों में से था, जिसने व्यापार समझौते के लिए बातचीत की शुरुआत की। हालांकि, अप्रैल आते-आते ट्रंप ने भारत के खिलाफ 26 फीसदी टैरिफ लगाने का एलान कर दिया। बाद में उन्होंने इस पर 90 दिन की रोक भी लगाई। इस बीच भारत ने ट्रंप प्रशासन से बातचीत के लिए लगातार बैठकें कीं। हालांकि, आखिर में कृषि क्षेत्र और डेयरी सेक्टर को लेकर सहमति नहीं बन पाई और दोनों देशों में तल्खी पैदा हो गई।

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  1. भारत-पाकिस्तान संघर्ष में ट्रंप की श्रेय लेने-नोबेल के लिए नामित करवाने की कोशिश
    अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच 7 से 10 मई के बीच हुए संघर्ष को लगातार रुकवाने का दावा किया है। इतना ही नहीं ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच विवादों पर भी मध्यस्थता की बात कहते रहे हैं और इसे सदियों पुराना मसला बताते हैं, जबकि पाकिस्तान 1947 में ही अस्तित्व में आया।

17 जून को जब भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष पूरी तरह रुक चुका था तब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री को फोन किया। इस फोन में उन्होंने दावा किया कि वह दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष खत्म कराने के लिए गौरवान्वित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने वाला है। एनवाईटी के मुताबिक, यह पीएम मोदी को सीधा इशारा था कि वह भी ऐसा ही करें।

अखबार ने इस फोन कॉल की जानकारी रखने वालों के हवाले से दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे बिल्कुल सहमत नहीं थे। उन्होंने ट्रंप से साफ शब्दों में कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया संघर्ष विराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं रही। यह भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी बातचीत के बाद हुआ है।

ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी को नजरअंदाज करने की कोशिश की। हालांकि, भारतीय पीएम की तरफ से जताई गई असहमति और नोबेल शांति पुरस्कार के मामले में कुछ न कहना, दोनों नेताओं के रिश्तों में खटास पैदा कर गया।

  1. फिर मृत अर्थव्यवस्था वाले बयान पर
    ट्रंप ने पिछले महीने भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लगाने का एलान किया था। इसमें से 25 प्रतिशत टैरिफ रूस से तेल खरीदने के लिए लगाया गया। 27 अगस्त से यह आयात शुल्क प्रभावी भी हो गया। हालांकि, जब ट्रंप के एलान के बाद भी अमेरिका के टैरिफ लगाने के निर्णय पर भारत ने समझौते की कोशिश नहीं की तो यह बात ट्रंप के अहं पर चोट कर गई। इसके बाद ही उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्ता को ‘मृत’ करार दे दिया था। जर्मन अखबार और जापानी मीडिया ग्रुप निक्केई एशिया ने भी कहा था कि मोदी को ट्रंप की इस तरह की टिप्पणियां पसंद नहीं आईं।

ट्रंप के सलाहकार मंत्रियों ने भी लगातार दिए भड़काऊ बयान
डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन में शामिल तीन नेताओं ने लगातार भारत के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी की है। इनमें- ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो, वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक का नाम शामिल है।

पीटर नवारो: नवारो ने कहा कि ‘ये मोदी का युद्ध है क्योंकि यूक्रेन में शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर गुजरता है। रूस द्वारा भारत को कम दाम पर कच्चा तेल भेजा जा रहा है, जिससे रूस की युद्ध मशीन को चलाने में मदद मिल रही है। साथ ही युद्ध के चलते अमेरिका को हथियारों और फंडिंग के जरिए यूक्रेन की मदद करनी पड़ रही है।’

इतना ही नहीं ट्रंप के व्यापार सलाहकार ने यहां तक कह दिया कि पीएम मोदी एक महान नेता हैं, लेकिन मेरा ये कहना है कि भारतीय लोग, इस बात को समझें कि यहां क्या चल रहा है। ब्राह्मण लोग भारतीय लोगों की कीमत पर फायदा कमा रहे हैं। हमें इसे रोकने की जरूरत है। बता दें कि पीटर नवारो ने जिस ब्राह्मण शब्द का इस्तेमाल किया है, उसका मतलब धनी और कुलीन वर्ग से है।

स्कॉट बेसेंट: भारत के खिलाफ बयानबाजी कर रिश्ते बिगाड़ने की कोशिश करने वालों में दूसरा नाम अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट का है। बेसेंट ने कुछ दिन पहले ही रूस से तेल खरीदने के लिए भारत को गलत बताया था और कहा था कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो अमेरिका और इसके सहयोगियों को एक पॉइंट पर आगे आना होगा। हालांकि, उन्होंने भारत की आलोचना के साथ ही ये उम्मीद भी जताई कि अमेरिका और भारत के संबंध सुधर जाएंगे और दोनों देश अपने मतभेदों को सुलझाने में सक्षम हैं।

हावर्ड लुटनिक: एक साक्षात्कार में लुटनिक ने कहा कि मुझे लगता है कि टैरिफ का परिणाम झेलने वाले और इसके कारण रोजगार गंवाने वाले लोग अपनी सरकार पर समझौता करने का दबाव बनाएंगे। ऐसे में यह अमेरिकी राष्ट्रपति के हाथ में होगा कि वह भारत के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहते हैं।

एक दिन पहले ही उन्होंने कहा कि भारत अभी अपना बाजार नहीं खोलना चाहता, रूसी तेल खरीदना बंद नहीं करना चाहता और ब्रिक्स का हिस्सा बनना बंद नहीं करना चाहता। उन्होंने कहा कि वे (भारत) रूस और चीन (ब्रिक्स में) के बीच की कड़ी हैं। अगर आप यही बनना चाहते हैं तो बन जाइए। लेकिन या तो डॉलर का समर्थन कीजिए, संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन कीजिए, अपने सबसे बड़े ग्राहक यानी अमेरिकी उपभोक्ता का समर्थन कीजिए या फिर मुझे लगता है कि आपको 50% टैरिफ देना होगा। और देखते हैं कि यह कब तक चलता है।

भारत ने अमेरिका की कोशिशों का कैसे जवाब दिया?
भारत ने अमेरिकी नेताओं को इस मामले में कोई सीधी प्रतिक्रिया या कड़ा जवाब देने के बजाय सधे शब्दों में प्रतिक्रिया दी है। भारत ने शुक्रवार को ही पीटर नवारो के हालिया बयानों को सख्ती से खारिज कर दिया। विदेश मंत्रालय (एमईए) ने साफ कहा कि नवारो के बयान न केवल गलत हैं, बल्कि भ्रामक भी हैं। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते गहरे हैं और इन्हें भ्रामक बयानों से प्रभावित नहीं किया जा सकता। भारत चाहता है कि यह साझेदारी आपसी सम्मान और साझा हितों के आधार पर आगे बढ़ती रहे।

इसी तरह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली में बदलाव के बाद एक हालिया इंटरव्यू में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का एजेंडा ‘नेशन फर्स्ट’ है। दुनिया में जो कुछ हो रहा है, हमारी सरकार कूटनीतिक तरीके से उसका समाधान निकाल रही है। उन्होंने भारत और चीन के रिश्तों पर कहा कि हमारे दोस्त कई देश हैं, लेकिन राष्ट्रहित से भारत कभी समझौता नहीं करेगा। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि भारत के कुल आयात खर्च में कच्चे तेल की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। ऐसे में, जहां से सस्ता और स्थिर तेल मिलेगा, भारत वहां से आयात करेगा। उन्होंने कहा, “हम अपनी जरूरतों के मुताबिक निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। रूस से तेल खरीदना हमारी आर्थिक रणनीति का हिस्सा है।”

हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत ने सिर्फ प्रतिक्रिया के जरिए ही अमेरिका की दबाव बनाने की कोशिशों का जवाब दिया। हाल ही में केंद्र सरकार ने अपनी अहम अंदरूनी नीतियों में बदलाव करने का रास्ता अपनाया है। इसके तहत भारत ने 22 सितंबर को उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली में आमूलचूल बदलाव किए, ताकि अमेरिकी टैरिफ का असर भारतीय उत्पादों के उपभोग पर न पड़े और देश में ही इनकी खरीद बढ़ सके।

जीएसटी घटाने का एक प्रभाव यह भी होगा कि उपभोक्ताओं को कई जरूरत के उत्पादों और सेवाओं के लिए कम टैक्स चुकाना पड़ेगा। इससे नागरिकों की खरीद की क्षमता बढ़ेगी, जो कि त्योहारी महीनों में भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने का अहम जरिया बनेगा। गौरतलब है कि भारत की जीडीपी का 61 फीसदी हिस्सा निजी उपभोग में ही खर्च होता है, जो कि चीन और वियतनाम जैसे निर्यात पर निर्भर देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है। जहां भारत की जीडीपी में उत्पादों के निर्यात का हिस्सा 11 फीसदी है, वहीं वियतनाम की जीडीपी में निर्यात 85 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं।
तल्ख रवैये के बाद कैसे नरम पड़ने लगे ट्रंप के बयान
प्रधानमंत्री मोदी ने बीते हफ्ते चीन के तियानजिन का दौरा किया था। यहां उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में हिस्सा लिया और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अलग द्विपक्षीय बैठकों में हिस्सा लिया। इतना ही नहीं एससीओ के मंच पर 20 से ज्यादा अलग-अलग देश के नेताओं ने हिस्सा लिया।

इस पूरे समारोह की कई तस्वीरें पश्चिमी सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुतिन के साथ कार में बैठकर बातचीत करने की तस्वीर सबसे ज्यादा वायरल हुई। इस बीच भारतीय, चीनी और रूसी पीएम की आपस में चर्चाओं की भी कई तस्वीरें सामने आईं। इसके बाद पश्चिमी मीडिया में हंगामा मच गया। सीएनएन से लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स तक में लेख में पीएम मोदी की मुलाकात सबसे ज्यादा चर्चा में रही। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को लेकर कई सवाल भी उठे। विश्लेषकों ने राय दी कि मोदी का चीन दौरा किसी बड़े समझौते को करने की कोशिश से ज्यादा यह दिखाने का प्रयास था कि भारत के पास अमेरिका से इतर भी विकल्प मौजूद हैं।

कैसे लगातार नरम पड़ता गया ट्रंप का रुख?
5 सितंबर 2025
ट्रंप ने गुरुवार को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एसससीओ सम्मेलन से जुड़ा एक पोस्ट किया। ट्रंप ने एक पुरानी तस्वीर साझा की, जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी दिखाई दे रहे थे। इस पोस्ट के साथ ट्रंप ने लिखा, ‘लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है। ईश्वर करे कि उनका भविष्य लंबा और समृद्ध हो!’

इस पोस्ट ने सभी का ध्यान खींचा। बाद में इस पोस्ट पर दी एक प्रतिक्रिया में ट्रंप ने लिखा कि ‘मुझे बहुत निराशा हुई है कि भारत रूस से इतना तेल खरीदेगा। हमने भारत पर बहुत ज्यादा टैरिफ लगाया है, 50 प्रतिशत टैरिफ। मेरे (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं, वह बहुत अच्छे हैं। वह कुछ महीने पहले यहां आए थे।’

6 सितंबर 2025 :
हालांकि, अगले ही दिन जब ट्रंप से पूछा गया कि जैसा कि उन्होंने भारत को खोने वाला बयान दिया, तो वो भारत को खो देने के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं। इस पर ट्रंप ने अपना पिछला बयान बदलते हुए कहा, “मैं हमेशा (नरेंद्र) मोदी का दोस्त रहूंगा, वह एक महान प्रधानमंत्री हैं। लेकिन मुझे इस समय उनके द्वारा किए जा रहे काम पसंद नहीं आ रहे हैं। लेकिन भारत और अमेरिका के बीच एक खास रिश्ता है। चिंता की कोई बात नहीं है। हमारे बीच ऐसे पल आ जाते हैं।”

पीएम मोदी ने क्या प्रतिक्रिया दी?
6 सितंबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक मूल्यांकन की हम तहे दिल से सराहना करते हैं। हम उनका पूर्ण समर्थन करते हैं। भारत और अमेरिका के बीच एक अत्यंत सकारात्मक, दूरदर्शी व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है।”

इतना ही नहीं पीएम मोदी के बयान के बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के साझेदारी को बहुत महत्व देते हैं। जहां तक राष्ट्रपति ट्रंप की बात है, उनके (प्रधानमंत्री मोदी के) राष्ट्रपति ट्रंप के साथ हमेशा से ही बहुत अच्छे व्यक्तिगत संबंध रहे हैं। लेकिन मुद्दा यह है कि हमारी अमेरिका के साथ बातचीत चल रही है। इससे ज्यादा इस समय मैं और कुछ नहीं कह सकता हूं।

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