Chabahar: भारत को व्यापक नुकसान पहुंचाएगा चाबहार पर अमेरिकी फैसला; कनेक्टिविटी बढ़ाने की परियोजनाओं पर ब्रेक

थर्ड आई न्यूज

नई दिल्ली I चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से छूट खत्म करने का अमेरिकी फैसला भारत को आर्थिक और रणनीतिक नुकसान पहुंचाने वाला साबित होगा। एक तरफ जहां भारत इस बंदरगाह के बुनियादी ढांचे के विकास पर 85 मिलियन डॉलर (749 करोड़ रुपये) का निवेश कर चुका है जबकि 120 मिलियन डॉलर (1057 करोड़ रुपये) की योजनाएं पाइपलाइन में हैं। वहीं यूरोप, रूस, अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया तक सीधी पहुंच के कारण इसे रणनीतिक स्तर पर चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का जवाब माना जाता रहा है।

टैरिफ मुद्दे पर भारत-अमेरिका रिश्तों में आई खटास के बीच ईरानी स्वतंत्रता एवं प्रसार-रोधी अधिनियम (आईएफसीए) के तहत चाबहार को प्रतिबंधों से मिली छूट 29 सितंबर से खत्म करने का फैसला भारत के लिए दोहरा झटका है। इस कदम से बंदरगाह पर भारतीय संचालकों के खिलाफ अमेरिका की तरफ से जुर्माने लगाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। इसने भारत की सबसे अहम क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं में से एक के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

चाबहार न केवल भारत का सबसे नजदीकी ईरानी बंदरगाह है, बल्कि समुद्री दृष्टिकोण से भी एक उत्कृष्ट बंदरगाह है। भारत के 2018 में सरकारी कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लि. के माध्यम से चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती टर्मिनल का संचालन नियंत्रण अपने हाथ में लिया था। तभी से यह बंदरगाह पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया के लिए व्यापार मार्गों को सुरक्षित करने की नई दिल्ली की रणनीति का एक अहम हिस्सा बन गया है। ओमान की खाड़ी में स्थित यह बंदरगाह न केवल क्षेत्रीय वाणिज्य को सुगम बनाता है, बल्कि अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण माध्यम बना हुआ है।

निवेश, विकास और कारोबार पर पड़ेगा सीधा असर :
विशेषज्ञों की मानें तो छूट खत्म होने से चाबहार पोर्ट से जुड़ी निवेश, उपकरण सप्लाई, रेल परियोजना जैसी तमाम गतिविधियों और वित्तीय लेन-देन पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हो सकते हैं। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए उपकरण लाना महंगा और जटिल हो जाएगा। शिपिंग और फाइनेंस की लागत बढ़ने से भारतीय कंपनियों के ठेके और कारोबार पर सीधा असर पड़ेगा। 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए तो भारत को अफगानिस्तान की आर्थिक और मानवीय सहायता के लिए चाबहार के इस्तेमाल को लेकर छूट मिली थी। छूट की वजह से ही भारत ने इस बंदरगाह के विकास पर खासा निवेश किया। 13 मई 2024 को भारत ने इस पोर्ट को 10 साल तक ऑपरेट करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे।

क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने में चाबहार बंदरगाह की रही है अहम भूमिका :
विकास के साथ हालिया वर्षों में माल परिवहन में तेजी आई है, जिसमें 80 लाख टन से ज्यादा माल की आवाजाही शामिल है। बंदरगाह की क्षमता को 1,00,000 से बढ़ाकर 5,00,000 टीईयू करने और 2026 के मध्य तक इसे ईरान के रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की योजना इसके बढ़ते महत्व को और रेखांकित करती है। इस बंदरगाह का होर्मुज जलडमरूमध्य के निकट होना क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिहाज से भी बेहद अहम माना जाता है।

भारत की कीमत पर चीन उठाएगा फायदा :
कूटनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि भारत ने एक बार ट्रंप के पहले कार्यकाल के प्रतिबंधों का पालन करने के लिए ईरान से सभी तेल आयात रोककर अपने हितों को दांव पर लगाया था। इससे चीन को अप्रत्याशित लाभ हुआ, जिससे वह ईरान के सस्ते कच्चे तेल (जो दुनिया में सबसे सस्ता है) का लगभग एकमात्र खरीदार बन गया। इससे भारत की कीमत पर चीन की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हुई। अब, चाबहार पर छूट खत्म करने से एक बार फिर भारत के हितों को गहरी चोट पहुंच सकती है। चाबहार चीन के रोड एंड बेल्ट में शामिल पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का रणनीतिक जवाब है। लेकिन ट्रंप की नीतियों से भारत को समुद्री क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे पर अंकुश लगाने के बदले में दंड ही भुगतना पड़ रहा है। ट्रंप के अधिकतम दबाव का मतलब हमेशा बीजिंग के लिए अधिकतम लाभ रहा है, और इसकी कीमत भारत को चुकानी पड़ी है।

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