Navratri 2025: नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना, दूर होता है भय, कलह और नकारात्मक शक्तियां

थर्ड आई न्यूज
नई दिल्ली I मां दुर्गा जी की सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं, अर्थात इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है।
देवी कालरात्रि का स्वरूप :
पुराणों के अनुसार देवी दुर्गा ने राक्षस रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को उत्पन्न किया था। इनके शरीर का रंग घने अंधकार जैसा है, बिखरे हुए बाल, गले में विद्युत जैसी माला और तीन नेत्र इनकी विशेषता है। इनके सांसों से अग्नि ज्वालाएं निकलती रहती हैं और इनका वाहन गर्दभ है। वर और अभय मुद्रा में हाथ तथा खड्ग और काँटे का अस्त्र धारण करने वाली मां कालरात्रि भयानक स्वरूप के बावजूद शुभ फल देने वाली हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।
सहस्त्रार चक्र और साधना का महत्व :
नवरात्रि के इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। यह चक्र ब्रह्मांड की सिद्धियों का द्वार माना जाता है। मां कालरात्रि की साधना से साधक के सभी पाप और विघ्न दूर होते हैं तथा उसे पुण्य का लाभ मिलता है। साधना करते समय मन, वचन और काया की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है।
मां कालरात्रि को स्मरण करने मात्र से भूत-प्रेत और दुष्ट आत्माएं दूर भागती हैं। इनके उपासक को अग्नि, जल, शत्रु, रात्रि और जंतु भय नहीं सताते। साथ ही, ये अकाल मृत्यु से रक्षा करती हैं और ग्रह बाधाओं को समाप्त करती हैं।
शुभ फल देने वाली देवी :
भले ही इनका रूप भयानक हो, परंतु यह भक्तों को सदैव शुभ फल देने वाली हैं। जो व्यक्ति निष्ठापूर्वक मां कालरात्रि का ध्यान करता है, उसके जीवन से दुःख और संकट दूर हो जाते हैं तथा उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
पूजा विधि :
कलश पूजन के बाद माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत, पुष्प और फल अर्पित करें। देवी को विशेष रूप से लाल पुष्प प्रिय हैं, अतः गुड़हल या गुलाब अर्पित करना शुभ माना जाता है। माता को गुड़ का भोग लगाएं और ब्राह्मण को गुड़ का दान करें।
ध्यान मंत्र :
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥