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RSS: ‘न तो मुसलमानों का भला होगा और न हिंदुओं का’, बंगाल में ऐसा क्यों बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत?

थर्ड आई न्यूज

नई दिल्ली। निलंबित तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर द्वारा बाबरी मस्जिद की नींव रखने के मामले पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद को फिर से बनाने की कोशिश एक राजनीतिक साजिश है, जिसका उद्देश्य विवाद को दोबारा शुरू करना है। यह सब वोटों के लिए किया जा रहा है और इससे न तो मुसलमानों का भला होगा और न ही हिंदुओं का। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा किऐसा नहीं होना चाहिए। मुझे ऐसा लगता है।

सरकार के पैसे से धार्मिक स्थल का निर्माण नहीं करना चाहिए- भागवत
जब उनसे पूछा गया कि क्या सरकारी पैसे से धार्मिक स्थल बनाना सही है? तो इसके जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि सरकार को मंदिर या किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण नहीं करना चाहिए, यही नियम है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल के समय हुआ था, जब वे गृह मंत्री थे। राष्ट्रपति ने उद्घाटन जरूर किया था, लेकिन उसमें सरकारी धन का उपयोग नहीं हुआ था।

राम मंदिर के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उसका निर्माण सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ। अदालत ने सरकार को ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया था, जिसे सरकार ने पूरा किया, लेकिन मंदिर निर्माण के लिए सरकारी पैसा नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि राम मंदिर के निर्माण में जनता ने स्वयं योगदान दिया।

‘भ्रामक अभियानों के कारण समाज के एक वर्ग में संगठन को लेकर कुछ गलतफहमियां’ :
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भ्रामक अभियानों के कारण समाज के एक वर्ग में संगठन को लेकर कुछ गलतफहमियां हैं। लोग अक्सर संघ को भाजपा के जरिये देखने की कोशिश करते हैं, जो गलत है। संघ को देखकर समझना संभव नहीं, इसे महसूस करना होगा।

सरसंघचालक भागवत ने यह बात रविवार को कोलकाता स्थित साइंस सिटी सभागार में आयोजित व्याख्यान शृंखला संघ के 100 वर्ष- नए क्षितिज के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा, संघ के नाम से पूरी दुनिया अवगत है लेकिन काम के बारे में सभी लोगों में सही धारणा नहीं है। संघ के हितैषियों में भी संघ कार्यों को लेकर सही जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को आरएसएस के बारे में कोई भी राय बनाने का अधिकार है लेकिन वह राय वास्तविकता पर आधारित होनी चाहिए, न कि विमर्शों और द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर।

भागवत ने कहा कि देशभर में संघ एक लाख 20 हजार प्रकल्पों के जरिये देश और समाज के उत्थान का प्रयत्न कर रहा है। लोगों के सामने वास्तविकता लाने के लिए चार शहरों में व्याख्यान और संवाद सत्र आयोजित किए गए हैं। संघ के स्थापना की पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संघ किसी परिस्थिति के प्रतिक्रिया स्वरूप, किसी के विरोध के लिए, किसी से स्पर्धा करने अथवा उपलब्धियां हासिल करने के उद्देश्य से नहीं बना। बल्कि यह हिंदू समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए अस्तित्व में आया।

हिंदू समाज को संगठित करना जरूरी :
संघ प्रमुख ने कहा कि देश की तत्कालीन परिस्थितियां संतोषजनक नहीं थीं। देश एक के बाद एक बाह्य आक्रमण झेलता आ रहा था। अंग्रेजों से पहले भी हम गुलामी का दंश झेल चुके थे। ऐसे में हिंदू समाज को संगठित करने की आवश्यकता महसूस हुई। समाज के आचरण को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए देश भर में कार्यकर्ताओं का समूह तैयार करना जरूरी लगा।

कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं :
उन्होंने कहा कि आरएसएस का कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है और संघ हिंदू समाज के कल्याण एवं संरक्षण के लिए कार्य करता है। संघ का कोई शत्रु नहीं है लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जिनकी संकीर्ण स्वार्थ की दुकानें संगठन के बढ़ने से बंद हो जाएंगी। भागवत ने जोर देकर कहा कि देश एक बार फिर विश्वगुरु बनेगा और समाज को इसके लिए तैयार करना संघ का कर्तव्य है।

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