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पश्चिम कार्बी आंगलोंग में हालात बेहद तनावपूर्ण, खेरोनी की सड़कों पर हजारों लोग; टकराव की आशंका

थर्ड आई न्यूज

खेरोनी: पश्चिम कार्बी आंगलोंग में स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है और हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं। चारों ओर से लोग हाथों में लाठियां लेकर सड़कों पर उतर आए हैं, जबकि सीमित बल के साथ पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने में जूझ रही है। खेरोनी में भारी संख्या में लोगों की मौजूदगी से माहौल और अधिक संवेदनशील हो गया है।

पुलिस इस समय कार्बी समुदाय और बिहारी समुदाय के लोगों के बीच फंसी हुई है। यदि दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है, क्योंकि इतनी बड़ी भीड़—हजारों लोगों—को सीमित पुलिस बल के सहारे नियंत्रित करना बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।

यदि असम सरकार या दोनों पक्ष आपसी बातचीत के जरिए जल्द समाधान नहीं निकालते हैं, तो हालात और अधिक विस्फोटक हो सकते हैं। हालांकि, आज असम सरकार के कैबिनेट मंत्री रणोज पेगू ने कार्बी आंगलोंग के लोगों के साथ बातचीत की। इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने अस्थायी रूप से अपना आंदोलन रोकने पर सहमति जताई।

लेकिन दूसरी ओर, बिहारी समुदाय के लोगों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि हालिया घटनाओं से उनके व्यवसाय प्रभावित हुए हैं और आजीविका पर गहरा असर पड़ा है, लेकिन उनकी समस्याओं पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी के विरोध में बिहारी समुदाय के लोग भी सड़कों पर उतर आए हैं।

खेरोनी की मुख्य सड़क पर एक बार फिर हजारों लोग जमा हो गए हैं। महिलाओं के हाथों में लाठियां हैं, छोटे-छोटे बच्चे भी लाठियां पकड़े हुए नजर आ रहे हैं और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए जा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस इस स्थिति को कब तक और कैसे संभाल पाएगी। पुलिसकर्मी हालात की गंभीरता को समझते हुए पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सीमित संसाधनों के कारण स्थिति कब तक नियंत्रण में रहेगी, यह कहना मुश्किल है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि पुलिस एक दिशा से आगे बढ़ती है और दूसरी ओर से कार्बी समुदाय तथा सामने से बिहारी समुदाय आमने-सामने आ जाता है, तो हालात बेहद भयावह हो सकते हैं।

गौरतलब है कि बीते कई महीनों से क्षेत्र में भूमि अधिकारों और स्वदेशी पहचान की मान्यता को लेकर लोग लगातार आंदोलन कर रहे हैं। ‘भूमिपुत्र’ बताते हुए स्थानीय निवासियों ने कई बार अपनी मांगें प्रशासन के समक्ष रखीं, लेकिन उन्हें बार-बार नजरअंदाज किया गया। यहां तक कि 16–17 दिनों तक चले भूख हड़ताल के बावजूद भी कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिली।

लोगों का कहना है कि फरवरी से दिलों में सुलग रही नाराजगी अब सड़कों पर दिखाई देने लगी है। यही आक्रोश हाल ही में खेरोनी बाजार और बाद में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) के मुख्य कार्यकारी सदस्य तुलिराम रोंगहांग के आवास पर हुई घटना में भी नजर आया।

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