राजस्थानी संस्कृति के श्रवण कुमार: शंकर बिड़ला और उनकी होली टोली

थर्ड आई न्यूज
राजस्थानी भाषा और लोकसंस्कृति, जो समय के थपेड़ों से कमजोर पड़ती जा रही थी, आज भी जीवंत और उत्साहपूर्ण बनी हुई है तो उसके पीछे कुछ जुनूनी लोग हैं, जो इसे अपनी मातृभाषा के रूप में नहीं, बल्कि अपनी अस्मिता और अस्तित्व के रूप में देखते हैं। इन्हीं में से एक नाम है शंकर बिड़ला, जो कोई पेशेवर गायक नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति के निष्ठावान योद्धा हैं।
शंकर बिड़ला और उनकी होली टोली व रंगीलो राजस्थान निःस्वार्थ भाव से भाषा और संस्कृति के संरक्षण का जो काम कर रहे हैं, वह किसी आंदोलन से कम नहीं। आज महानगरों की चकाचौंध में, जहां अपनी भाषा बोलने में लोग संकोच करते हैं, वहीं ये टोली उन लोगों को भी अपनी मायड़ भाषा राजस्थानी (मारवाड़ी) में झूमने और गाने पर मजबूर कर देती है।
फागुन में राजस्थानी रंग और शंकर बिड़ला का जादू :
फागुन का महीना, जब रंग और संगीत अपने चरम पर होते हैं, शंकर बिड़ला और उनकी टोली राजस्थानी फाग लोकगीतों के श्रृंगार रस से माहौल को सराबोर कर देती है। भले ही उन्होंने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा न ली हो, लेकिन जब वे अपनी टोली के साथ पारंपरिक राजस्थानी फाग गाते हैं, तो हर कोई मदहोश हो उठता है।
महानगरों के आलीशान अपार्टमेंटों में, जहां लोग अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं, वहां शंकर बिड़ला की टीम फाग गीतों की सुरीली धुनों के साथ ऐसा समां बांधती है कि लोग अपने संस्कारों और संस्कृति से फिर से जुड़ने को मजबूर हो जाते हैं। उनका जज्बा और ऊर्जा इतनी जबरदस्त होती है कि वे चार से पाँच घंटे तक लगातार महफिल में समा बांधे रखते हैं।
होली टोली और रंगीलो राजस्थान: संस्कृति संरक्षण के अनूठे आंदोलन
शंकर बिड़ला सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि राजस्थानी भाषा और लोकसंस्कृति के ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं। उन्होंने कभी कोई मंच नहीं मांगा, कोई पद नहीं चाहा, बस जुनून में अपनी मातृभाषा की सेवा करते रहे। यही वजह है कि उनकी टोली किसी संस्था, पद या एजेंडे से बंधी नहीं, बल्कि जुनून और निष्ठा से चलती है। यहां कोई अध्यक्ष, मंत्री या कोषाध्यक्ष नहीं है I कोई कार्यकारिणी समिति या ट्रस्ट बोर्ड भी नहीं I बस अपनी लोक संस्कृति के प्रति समर्पण है I यहां तो बस लोग आते गए कारवां बनता गया I
आज जब सोशल मीडिया पर हर चीज वायरल होने लगी है, तब शंकर बिड़ला और उनकी टोली हर रात फेसबुक पर लाइव आकर दुनिया भर के राजस्थानी लोगों को अपनी संस्कृति से जोड़ रहे हैं। जो लोग प्रत्यक्ष रूप से इस अद्भुत संगीत समारोह में नहीं पहुंच पाते, वे ऑनलाइन माध्यम से इसे सुन सकते हैं और इस समृद्ध संस्कृति का आनंद उठा सकते हैं।
संजीवनी बनती होली टोली और रंगीलो राजस्थान :
राजस्थानी भाषा और लोकसंस्कृति के संरक्षण में जो काम बड़े-बड़े संगठन नहीं कर पाए, वह शंकर बिड़ला, होली टोली और रंगीलो राजस्थान ने सहज रूप में कर दिखाया है। उनके द्वारा गाए गए फाग गीत न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि एक संदेश भी हैं कि अपनी भाषा, अपनी जड़ें, और अपनी पहचान को बचाने का समय आ गया है।
आज की मारवाड़ी सभा-संगठनों का कर्तव्य बनता है कि वे शंकर बिड़ला और उनकी टोली की सेवाओं को पहचान दें और उनके इस अविस्मरणीय योगदान को एक मंच प्रदान करें। यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक संस्कृति बचाने का आंदोलन है, जिसमें हर राजस्थानी को अपनी भागीदारी निभानी चाहिए।
राजस्थानी भाषा और संगीत की पुनर्जागृति :
फागुन के इस सुरीले मौसम में, जब चारों ओर रंगों की बौछार होती है, तब शंकर बिड़ला और उनकी टोली के गीत इसे और भी रंगीन बना देते हैं। उनके श्रृंगार रस से भरे फाग गीतों की मधुरता और परंपरागत वाद्ययंत्रों की धुनें न केवल मन को सुकून देती हैं, बल्कि आत्मा तक उतर जाती हैं।
अगर राजस्थानी भाषा और संस्कृति को संजीवनी देने वाले कुछ नाम गिनाने हों, तो शंकर बिड़ला का नाम सबसे पहले आएगा। वे आज सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि एक संस्कृति संरक्षक, भाषा प्रेमी और अपनी जड़ों के प्रति निष्ठावान योद्धा हैं। होली टोली और रंगीलो राजस्थान को सलाम, जिन्होंने फागुन के इस पावन महीने में अपनी मातृभाषा को फिर से जीवंत कर दिया!