ट्रंप की 50% टैरिफ धमकी भारत के लिए ‘खरीदारी का मौका’ : जेफरीज

थर्ड आई न्यूज

वाशिंग्टन I ग्लोबल ब्रोकिंग दिग्गज जेफरीज ने निवेशकों को सलाह दी है कि वे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय निर्यातों पर भारी टैरिफ लगाने की धमकी के बावजूद भारत को लेकर बुलिश (सकारात्मक) बने रहें। जेफरीज के प्रबंध निदेशक और उभरते बाजारों पर सबसे प्रभावशाली विश्लेषकों में से एक क्रिस्टोफर वुड ने अपनी नवीनतम ग्रीड एंड फियर (Greed & Fear) न्यूज़लेटर में कहा कि नई दिल्ली को वॉशिंगटन के दबाव में झुकने की आवश्यकता नहीं है।

वुड ने अपने ग्राहकों से कहा कि भारतीय शेयर बेचने के बजाय मौजूदा हालात में खरीदारी का मौका है। उनका कहना है—
“यह सिर्फ समय की बात है जब ट्रंप अपने रुख से पीछे हटेंगे, क्योंकि यह अमेरिका के हित में नहीं है। ट्रंप के ट्रैक रिकॉर्ड से साफ है कि उनके आक्रामक रुख के बाद अक्सर यू-टर्न देखने को मिलता है।”

उन्होंने आगे चेतावनी दी कि ट्रंप की टकरावपूर्ण व्यापार नीति वैश्विक ‘डी-डॉलराइजेशन’ (अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता से मुक्ति) की प्रक्रिया को और तेज कर सकती है। ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का गैर-डॉलर मुद्राओं में व्यापार करना इसकी मिसाल है। वुड के मुताबिक—
“ट्रंप ने चीन, रूस, भारत और ब्राज़ील को पहले कभी न देखी गई तरह एकजुट कर दिया है। वास्तव में ब्रिक्स को एक नए जोश के साथ पुनर्जीवित कर दिया गया है।”

हालांकि हाल के वर्षों में भारत ने उभरते बाजारों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया है—पिछले 15 वर्षों का सबसे खराब दौर—फिर भी जेफरीज भारत की दीर्घकालिक संभावनाओं पर सकारात्मक है। वुड का कहना है कि भारत की इस कमजोरी का कारण ऊंचे मूल्यांकन और भारी इक्विटी आपूर्ति रहा, जबकि कोरिया और ताइवान जैसे बाजार विशेष सेक्टरों के कारण तेज़ी में रहे। लेकिन अब जब भारतीय शेयरों का मूल्यांकन 10 साल के औसत पर लौट आया है, तो बाजार में सापेक्ष उछाल की संभावना मजबूत है।

जेफरीज इंडिया के विश्लेषण भी इसी आशावाद की पुष्टि करते हैं। उनका कहना है कि हर बार ऐसे गिरावट चक्र के बाद भारतीय शेयरों ने ऐतिहासिक रूप से मजबूत वापसी की है। वुड ने जोर देकर कहा—
“अब भारत से निवेश निकालने में देर हो चुकी है।”

उन्होंने अमेरिकी विदेश नीति पर भी तीखी टिप्पणी की और कहा कि ट्रंप प्रशासन में किसी भी सुसंगत वैचारिक ढांचे का अभाव है। वुड के अनुसार, “एक प्रभावी विदेश नीति के लिए वैचारिक ढांचा जरूरी है—और मौजूदा अमेरिकी प्रशासन में यह साफतौर पर नज़र नहीं आता।”

वुड ने यह भी जोड़ा कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ नाराज़ करके ट्रंप ने अनजाने में वह हासिल कर लिया, जो दशकों की कूटनीति नहीं कर सकी—ब्रिक्स देशों को और करीब लाना और डॉलर की वैश्विक वर्चस्व को चुनौती देना।

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