Portability: हेल्थ बीमा कंपनी… मोबाइल कनेक्शन की तरह बदलिए; खराब सेवाओं और अधिक प्रीमियम से पाएं निजात

थर्ड आई न्यूज

नई दिल्ली I IRDAI ने हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी के लिए जो नियम बनाए हैं, उनकी मदद से पॉलिसीहोल्डर्स पुराने बेनेफिट के साथ अपने हेल्थ कवर को एक बीमा कंपनी से दूसरी बीमा कंपनी में ट्रांसफर कर सकते हैं, वह भी बड़ी आसानी से।

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी लोगों को बेहतर प्रीमियम, ज्यादा कवरेज या अच्छी सेवाओं के साथ नई स्कीम चुनने की आजादी देती है। बीमा कंपनी के प्रोडक्ट से जुड़े लाभों, सेवाओं, प्रीमियम लागत या अस्पतालों के नेटवर्क से असंतुष्ट ग्राहक, पोर्टेबिलिटी की मदद से अपनी जरूरत के मुताबिक बेहतर विकल्प चुन सकते हैं। पोर्टेबिलिटी का एक और लाभ है, यह ग्राहक के अनुभव को बेहतर बनाती है और नए बीमा उत्पाद चुनने का मौका देती है। इससे बीमा कंपनियों पर प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेहतर सेवाएं देने का दबाव बनता है।

पोर्टेबिलिटी के लाभ :
पहले से मौजूद बीमारियों और स्पेशल ट्रीटमेंट के लिए वेटिंग पीरियड की निरंतरता बने रहना। इससे इस बात की चिंता पूरी तरह से खत्म हो जाती है, कि पॉलिसी पोर्ट करने के बाद कवरेज के लिए फिर से वेटिंग पीरियड खत्म होने का इंतजार करना पड़ेगा। पहले दिन से ही पुरानी और गंभीर बीमारियां के लिए कवरेज मिलने लगता है।

ग्रुप हेल्थ पॉलिसी को बनाएं इंडिविजुअल प्लान :
IRDAI के नियम कहते हैं, अगर आप किसी कंपनी में काम करते हैं और आपके पास ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसी है, तो आप कंपनी छोड़ने के साथ अपनी ग्रुप हेल्थ पॉलिसी को इंडिविजुअल प्लान में पोर्ट करवा सकते हैं।

कैसे होगी पोर्टिंग :
पॉलिसी खत्म होने से 45-60 दिन पहले अपनी बीमा कंपनी को पोर्ट करने के बारे में सूचना देनी होगी।

मौजूदा पॉलिसी के विवरण के साथ लिखित में पोर्टेबिलिटी आवेदन करना होगा।

फॉर्म के साथ आईडी, पता, पॉलिसी विवरण और मेडिकल हिस्ट्री देनी होगी।

बीमा कंपनी आवेदन और मेडिकल हिस्ट्री जांचने के बाद बीमा पोर्ट करेगी और नई पॉलिसी जारी करेगी।

इन बातों का रखें ध्यान :
पॉलिसी के नियमों और शर्तों को ध्यान से पढ़ें और समझें।

पिछली ग्रुप पॉलिसी के सभी लाभ नई इंडिविजुअल प्लान में सही ढंग से ट्रांसफर किए गए हैं या नहीं, इसकी जांच करें।

सिर्फ प्रीमियम में कमी के लिए बीमा को पोर्ट नहीं करना चाहिए। पॉलिसी के बेनिफिट्स देखना जरूरी है। जैसे अस्तपाल के रूम रेंट कैपिंग तो नहीं है? क्या कोई सब-लिमिट तो नहीं है? कोई को-पेमेंट का क्लॉज तो नहीं है। यह देखने के बाद बीमा कंपनी से जुडे हॉस्पिटल और वहां कैशलेस फैसिलिटी देखें। कंपनी की क्लेम हिस्ट्री कैसी है, यह भी जांचना चाहिए।

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