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RJD: हार के खलनायक…अस्तित्व बचाने की चुनौती; करारी हार के बाद अब परिवार में शुरू हो सकती है विरासत की जंग

थर्ड आई न्यूज

पटना I तेजस्वी यादव हमेशा चर्चा में रहे हैं। कभी सबसे कम उम्र का डिप्टी सीएम बन कर तो कभी सबसे कम उम्र में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनकर। कभी जाति की खास पहचान वाले बिहार में अंतरजातीय शादी रचाकर, तो कभी अपनी अगुवाई में युवाओं का नायक बनकर विपक्षी महागठबंधन को सत्ता की दहलीज में लाने को लेकर। इस बार उनकी चर्चा खुद बमुश्किल चुनाव जीतने के साथ राजद को सबसे बड़ी हार दिलाने वाले खलनायक के तौर पर है।

परिवार में खटपट के बीच तेजस्वी के नेतृत्व में राजद को मिली हार के बाद पार्टी के भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सवाल है कि क्या सबसे बड़ी हार के बाद लालू परिवार में चुनाव के दौरान शुरू हुई खटपट उग्र रूप लेगी? यह सवाल इसलिए कि सोशल मीडिया में आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में लालू के सबसे बड़े पुत्र तेजप्रताप पार्टी से निष्कासित हैं। प्रचार के दौरान लालू की सांसद पुत्री मीसा भारती और एक अन्य पुत्री रोहिणी आचार्य के नाराज होने की भी खबरें आईं।

जिम्मेदारी से बच नहीं सकते :
दरअसल तेजस्वी पर लालू परिवार के सदस्य और पार्टी का एक धड़ा राज्यसभा सदस्य बनाए गए संजय यादव के इशारे पर मनमानी का आरोप लगाते रहे हैं। पार्टी से निष्कासित होने के बाद तेजप्रताप ने कई बार सार्वजनिक तौर पर संजय समेत तेजस्वी के करीबी नेताओं को शकुनियों की टीम करार दिया। चूंकि सीट बंटवारे से लेकर टिकट वितरण तक सिर्फ तेजस्वी की चली है, ऐसे में वह पार्टी को मिली अब तक की सबसे बड़ी हार की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।

आए, छाए…अब सवालों में घिरे :
क्रिकेट के कॅरिअर को छोड़ कर 2015 में राजनीति में आते ही तेजस्वी ने कई कीर्तिमान बनाए। उनकी यात्रा के पहले पड़ाव में ही राजद का दस साल का सत्ता का सूखा खत्म हुआ। चुनाव जीतने के बाद सबसे कम (26 वर्ष की) उम्र के डिप्टी सीएम बने। नीतीश ने जब पाला बदला, तो सबसे कम उम्र के नेता प्रतिपक्ष बने।

बीते चुनाव में युवाओं का नायक बन कर विपक्षी महागठबंधन को सत्ता की दहलीज तक पहुंचाया। जाति की पहचान रखने वाले बिहार में ईसाई बिरादरी की रेचल गोडिन्हो से अंतरधार्मिक विवाह करने का साहस दिखाया। हालांकि सबसे बड़ी हार के बाद अब तेजस्वी नए और नकारात्मक कारणों से चर्चा में हैं।

तेज प्रताप…खुद तो हारे ही, राजद का वोट भी काटा :
लालू प्रसाद के साए से निकल कर सियासी जमीन बनाने निकले तेज प्रताप यादव बुरी तरह विफल रहे। पारिवारिक कलह के चलते राजद से बाहर किए गए तेज प्रताप जनशक्ति जनता दल (जेजेडी) बनाकर जोरशोर से चुनावी मैदान में उतरे थे। प्रचार के दौरान भावनात्मक अभियान चलाकर उन्होंने लोगों का ध्यान भी खींचा, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि इसका उन्हें तो फायदा मिला नहीं, उल्टे अपने छोटे भाई और विपक्ष के सीएम चेहरा तेजस्वी यादव को नुकसान पहुंचा। तेज प्रताप की राजनीतिक पारी की शुरुआत 2015 के चुनाव में हुई थी। वह दो बार विधायक रहे और मंत्रिमंडल में भी।

इस बार उन्होंने जैसे प्रचार किया, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। उनका प्रचार निजी और जन-केंद्रित रहा। उनका तरीका छोटे भाई तेजस्वी के हाईटेक, हेलिकॉप्टर अभियान से बिल्कुल अलग था। तेजस्वी जहां बेरोजगारी व शासन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते रहे, वहीं तेज प्रताप का संदेश वफादारी, राजनीति में शुचिता और सम्मान की लड़ाई के इर्द-गिर्द रहा।
राजनीतिक अस्तित्व की अकेली लड़ाई में तेज प्रताप ने 40 से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। यह सीटें ज्यादातर यादव बहुल क्षेत्रों और राजद के पारंपरिक गढ़ों में थीं। उन्होंने ज्यादातर सीटों पर बागियों और पूर्व विधायकों को मैदान में उतारा।

यादव मतदाताओं का एक वर्ग अब भी उन्हें लालू के बड़े बेटे के रूप में देखता है, जिन्हें उनकी ही पार्टी ने गलत समझा और दरकिनार कर दिया। समझा जाता है कि यादव वोटरों के उनसे इस भावनात्मक लगाव के चलते ही महागठबंधन को नुकसान हुआ।

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