होली टोली का फागुनी सांस्कृतिक कार्यक्रम : जब मरुधरा की हवाएं ब्रह्मपुत्र के तट पर आकर थिरकने लगती हैं

थर्ड आई न्यूज
शंकर बिड़ला की रिपोर्ट
गुवाहाटी में होली का उत्सव सिर्फ रंगों और गुलाल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अपनी अलग पहचान रखता है। इसी जीवंत परंपरा को सहेजने और संजोने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है गुवाहाटी की सुप्रसिद्ध होली टोली, जो पिछले तीस वर्षों से निरंतर अपनी संस्कृति की रंगीन छटा बिखेर रही है। इस टोली के माध्यम से न केवल रंगों की बरसात होती है, बल्कि राजस्थानी लोक-संस्कृति का उत्सव भी मनाया जाता है, जिसमें परंपरा की खुशबू और अपनत्व का रस घुला रहता है।
बसंत पंचमी से रंगों के उत्सव की मंगल शुरुआत :
होली टोली का यह सांस्कृतिक सफर बसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है, जब इसके समर्पित सदस्य अपने-अपने घरों में गुलाल और केसर के साथ इस पावन पर्व की विधिवत शुरुआत करते हैं। महाशिवरात्रि के पावन अवसर के साथ ही हर रात 10 बजे से टोली के सौजन्य से आदरणीय लिच्छुजी सोगानी की पार्किंग (चायगली) में एक अनूठा संगम साकार होता है—जहाँ राजस्थानी लोकगीतों की मधुर स्वर-लहरियाँ वातावरण को भावपूर्ण बना देती हैं।
यह केवल एक मनोरंजन का कार्यक्रम नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक सशक्त प्रयास है, जिसमें समाज के हर वर्ग की सहभागिता होती है।
राजस्थानी लोकगीतों के सुरों में संस्कृति का उत्सव :
गुवाहाटी की इस होली टोली के आयोजन में राजस्थानी होली के पारंपरिक लोकगीतों का विशेष स्थान है। जब “पधारो म्हारे देस”, “गेरिये नी गेर”, “केसरिया बालम”, और “होली आयी रे कान्हा रंग बरसे” जैसे मधुर गीत गूंजते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो मरुधरा की हवाएँ ब्रह्मपुत्र के तट पर आकर थिरक उठी हों।
ये गीत केवल सुरों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उनमें राजस्थानी लोकजीवन की खुशबू, प्रेम, उल्लास और सामूहिकता का अहसास भी समाहित होता है। होली टोली के सदस्य पारंपरिक वेशभूषा में, हाथों में ढोलक, मंजीरे और चंग के साथ जब इन गीतों को गाते हैं, तो पूरा वातावरण रंगीन हो उठता है।
भव्य आयोजन: उत्सव का चरम स्वरूप
होली से चार दिन पूर्व, यह टोली पुरानी जेल परिसर की पार्किंग में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन करती है, जहाँ हजारों की संख्या में महिलाएँ, बच्चे, युवा और बुजुर्ग उमड़ पड़ते हैं। यह आयोजन केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति का जीवंत मंच बन जाता है, जहाँ फाग के गीत, मयूर नृत्य, गेर नृत्य और छंदों की प्रस्तुति उत्सव में चार चांद लगा देती है।
गुलाल और अबीर की सुगंध में भीगे इस आयोजन में लोग अपने सारे भेदभाव भूलकर “होली है!” की आनंदमयी पुकार के साथ एक-दूसरे को गले लगाते हैं।
संस्कृति के संरक्षण का अनुपम प्रयास :
आज के दौर में, जब पारंपरिक संस्कृतियाँ आधुनिकता के आवरण में धुंधली पड़ रही हैं, गुवाहाटी की होली टोली का यह सतत प्रयास अत्यंत सराहनीय है। यह टोली न केवल राजस्थानी संस्कृति की जीवंतता को संजोए हुए है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी कर रही है।
संस्कृति, परंपरा और सामूहिकता के इस रंगारंग संगम को समाज का अपार समर्थन मिलता है, और यही कारण है कि यह आयोजन हर वर्ष और भी भव्य स्वरूप लेता जा रहा है।
गौरवशाली प्रतीक: अपनी परंपरा का दर्पण
गुवाहाटी के राजस्थानी समाज और स्थानीय गुवाहाटीवासियों के लिए यह टोली केवल एक समूह नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और परंपराओं का गौरवशाली प्रतीक है। इस टोली के समर्पित सदस्यों के अथक प्रयासों ने यह सुनिश्चित किया है कि होली के रंगों के साथ हमारी सांस्कृतिक पहचान के रंग भी फीके न पड़ें।
इस अनुपम सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने के लिए होली टोली को साधुवाद, और आने वाले वर्षों के लिए ढेरों शुभकामनाएँ!
“आओ, इस बार भी होली के रंगों के साथ अपनी संस्कृति की खुशबू को सहेजें और इन मधुर लोकगीतों के सुरों में खो जाएँ!”