स्वास्थ्य चेतावनी के घेरे में समोसा-जलेबी: परंपरागत स्वाद पर उठे सवाल

थर्ड आई न्यूज

नई दिल्ली। समोसा, कचोरी और जलेबी जैसे पारंपरिक भारतीय व्यंजनों पर अब स्वास्थ्य संकट के बादल मंडरा रहे हैं। भारत सरकार इन तैलीय और अत्यधिक मीठे खाद्य पदार्थों पर स्वास्थ्य संबंधी वैधानिक चेतावनी लगाने का प्रस्ताव लेकर आ रही है, ठीक वैसे ही जैसे सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी दी जाती है। यह कदम देश में बढ़ते मोटापे, मधुमेह और हृदय रोग जैसे रोगों की गंभीर स्थिति को देखते हुए उठाया जा रहा है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, बार-बार एक ही तेल में तले गए समोसे और कचोरी में ट्रांस फैट और कैंसरकारी रसायन जैसे ऐक्रिलामाइड पनपते हैं, जो हृदय और धमनियों को नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, जलेबी जैसी मिठाइयों में डुबोई गई चीनी की गाढ़ी चाशनी शरीर में तुरंत ग्लूकोज की मात्रा बढ़ाकर टाइप-2 डायबिटीज और फैटी लिवर जैसी बीमारियों को न्योता देती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत जल्द ही दुनिया में डायबिटीज के सबसे अधिक मरीजों वाला देश बन सकता है। देश में हर पांचवां व्यक्ति मोटापे का शिकार है, और इस स्वास्थ्य संकट के पीछे अत्यधिक तली-भुनी और मीठी चीजों का बढ़ता उपभोग प्रमुख कारण है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिट इंडिया मूवमेंट के तहत देशवासियों से आह्वान किया है कि वे कम तेल, कम नमक और कम चीनी का सेवन करें। उन्होंने चेतावनी दी है कि “अति तेल में तंदुरुस्ती नहीं, बीमारी का प्रवेश द्वार है।”

सरकार अब रेस्तरां, मिठाई दुकानों और स्कूल-कॉलेजों के कैंटीनों में ऐसे खाद्य पदार्थों के पास चेतावनी बोर्ड लगाने की योजना पर काम कर रही है। अस्पतालों और सरकारी संस्थानों में पहले चरण में इसकी शुरुआत की जाएगी।

हालांकि, इस कदम को लेकर कुछ हलकों में विवाद भी है। कुछ लोगों का मानना है कि यह निर्णय भारतीय पारंपरिक व्यंजनों के खिलाफ है और पिज़्ज़ा-बर्गर जैसे विदेशी फास्ट फूड को बढ़ावा देने वाला कदम है। कुछ आलोचक इसे “जंक फूड माफिया” का सांस्कृतिक षड्यंत्र भी बता रहे हैं।

वहीं, हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बिमल छाजेड़ जैसे विशेषज्ञ पिछले तीन दशकों से ‘जीरो ऑयल डाइट’ को बढ़ावा देते आ रहे हैं और इसे हृदय रोग से बचाव के लिए कारगर मानते हैं।

साफ है कि समोसे और जलेबी जैसे स्वादिष्ट व्यंजनों का विरोध नहीं, बल्कि उनके अनियंत्रित उपभोग से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को उजागर करना ही इस पहल का मुख्य उद्देश्य है।

जनस्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की दिशा में यह कदम एक क्रांतिकारी शुरुआत हो सकती है, जो परंपरा और स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है।

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