लोगों की कमाई किस राज्य में कितनी: गोवा-सिक्किम की आय बिहार से आठ गुना ज्यादा, क्या कह रहे आरबीआई के आंकड़े?
थर्ड आई न्यूज
नई दिल्ली I क्या भारत में राज्यों के बीच आर्थिक असमानता कम हो रही है? आरबीआई के ताजा आंकड़े बताते हैं कि इसका जवाब ‘नहीं’ है। भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी ‘ भारतीय राज्यों पर साख्यिकी हैंडबुक 2024-25’ के राज्य घरेलू उत्पाद (NSDP) के आंकड़े दिखाते हैं कि अमीर राज्य और अमीर हो रहे हैं, जबकि गरीब राज्य उस रफ्तार से दौड़ने के मामले में अब भी काफी पीछे हैं। आंकड़ों के अनुसार गोवा, सिक्किम और तेलंगाना जैसे राज्यों की प्रति व्यक्ति आय बिहार और उत्तर प्रदेश के मुकाबले कई गुना अधिक हो गई है।
किन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक?
हैंडबुक में द इनकम लैडर यानी आय का गणित शीर्षक के तहत वर्तमान कीमतों पर प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद का आंकड़ा दिया गया है। ‘टेबल 19’ में दिए गए इन आंकड़ों के अनुसार देश में गोवा और सिक्किम जैसे राज्यों का प्रति व्यक्ति उत्पाद या आय देश में सबसे अधिक है। यहां यह आंकड़ा सालाना 5 लाख रुपये के स्तर को पार कर चुका है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में सिक्किम भी शीर्ष राज्यों में शामिल हैं। यह राज्य अपने फार्मा और पर्यटन सेक्टर के दम पर प्रति व्यक्ति आय के मामले में शीर्ष राज्यों में बना हुआ है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में तेलंगाना का प्रदर्शन भी बढ़िया है। दक्षिण भारत का यह राज्य प्रति व्यक्ति आय के मामले में तेजी से ऊपर चढ़ा है और इसकी आय 3.87 लाख रुपये के करीब पहुंच गई है।
प्रति व्यक्ति उत्पाद के मामले में बिहार-यूपी का कैसा प्रदर्शन?
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड जैसे राज्यों में प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा कम है। बिहार की प्रति व्यक्ति आय 2024-25 के अनुमानों के अनुसार लगभग ₹69,321 है। यह आंकड़ा गोवा के मुकाबले 8 गुना कम है। उत्तर प्रदेश और झारखंड की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है। इसका मतलब है कि एक ही देश में रहने के बावजूद, जीवन स्तर और क्रय शक्ति में जमीन-आसमान का अंतर है।
क्या आर्थिक असमानता के कारण बढ़ रहा पलायन :
यह असमानता न केवल जीवन स्तर में अंतर पैदा करती है बल्कि देश के भीतर ‘आर्थिक प्रवासन’ का भी मुख्य कारण है। बिहार, झारखंड और यूपी से लाखों लोग रोजगार की तलाश में पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। नीति निर्माताओं के लिए चुनौती यह है कि वे इन पिछड़े राज्यों में स्थानीय उद्योगों को कैसे बढ़ावा दें ताकि अमीरी और गरीबी के बीच यह खाई कम हो सके।

