मारवाड़ी सम्मेलन का कुंभ: एक वैचारिक आहुति मेरी भी

- उमेश खंडेलिया, धेमाजी
मारवाड़ी समाज का सबसे बड़ा, 90 वर्षीय एकछत्र संगठन, मारवाड़ी सम्मेलन, पूर्वोत्तर प्रदेश के बराक घाटी में अपने प्रांतीय अधिवेशन के लिए एकत्रित हुआ है। इस अधिवेशन को संगठनों का “कुंभ” कहा जाता है, जहां विभिन्न विचारधाराओं के अनुभवी, नवागत, प्रखर विद्वान और सहज-सरल व्यक्तित्वों का समावेश होता है। यहां विचार-विमर्श, मंथन, आलोचना और विमर्श से छनकर प्राप्त परिपक्व दिशा-निर्देशों के आधार पर संगठन भविष्य की राह सुनिश्चित करते हैं। इस आयोजन का मूल उद्देश्य समाज हित में ठोस निर्णय लेना और आवश्यक सुधारों को लागू करना होता है।
मारवाड़ी सम्मेलन के अतीत से वर्तमान तक की यात्रा पर विचार करें, तो यह स्पष्ट होता है कि संगठन ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जो इसकी सक्रियता और प्रासंगिकता को प्रमाणित करती हैं। एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में यह हम सभी के लिए गर्व की बात है। हालांकि, बदलते समय और समाज की आवश्यकताओं को देखते हुए सम्मेलन की कार्यशैली और चिंतन के विषयों में बदलाव आवश्यक प्रतीत होता है।
परिवर्तन की आवश्यकता और संगठन की सीमाएँ
आज समाज में बढ़ती कुरीतियाँ एक गंभीर समस्या हैं, लेकिन संगठन की भूमिका केवल सलाह (एडवाइजरी) जारी करने तक सीमित रह गई है। किसी भी कठोर निर्णय को लागू करने या नियंत्रण स्थापित करने का अधिकार संगठनों के पास नहीं है। इसके अतिरिक्त, संगठन के प्रति कम होती आस्था, समुदाय में बढ़ता बिखराव और संगठन की कार्यशैली के प्रति उदासीनता जैसी समस्याएँ भी गंभीर चिंता का विषय हैं। यही कारण है कि समाज के 2% से भी कम लोग संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।
वास्तविकता यह है कि “सम्मेलन की आवाज, समाज की आवाज बने”, यह लक्ष्य अभी भी बहुत दूर है। 90 वर्षों का कार्यकाल किसी भी संगठन के लिए परिपक्वता और अनुभव प्राप्त करने के लिए पर्याप्त समय होता है। ऐसे में यह अपेक्षा की जा सकती थी कि यह समाज का सर्वमान्य प्रतिनिधि संगठन बन जाता। ऐसा न हो पाने के पीछे निश्चित रूप से कुछ ठोस कारण रहे होंगे। अनुभवी और समर्पित समाजसेवी इस विषय पर गंभीरता से मंथन कर रहे होंगे, जिसके परिणाम भविष्य में स्पष्ट होंगे।
विचार बिंदु और सुझाव
1️⃣ सुदूर क्षेत्रों की समस्याओं पर ध्यान देना
महानगरों की सुरक्षित और सुविधायुक्त जीवनशैली के विपरीत, कई सौ किलोमीटर दूर बसे समाज के लोगों को संगठन से जोड़ने की आवश्यकता है। केवल औपचारिक दौरे या शिष्टाचार भेंट से उनकी वास्तविक समस्याओं को नहीं समझा जा सकता। उनके लिए ठोस और व्यावहारिक योजनाएँ बनानी होंगी।
2️⃣ संगठन की प्रभावी भूमिका तय करना
शिवसागर कांड जैसी परिस्थितियों में सम्मेलन की भूमिका स्पष्ट होनी चाहिए। केवल सुझाव (एडवाइजरी) जारी करने के बजाय मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया जाए, जिससे निर्णयों का क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके।
3️⃣ स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों से समन्वय
पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और जातीय संगठनों के नेताओं से आत्मीय संबंध स्थापित किए जाएँ, ताकि सामाजिक आयोजनों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।
4️⃣ असमिया भाषा में सम्मेलन की पहल
करीब एक दशक पूर्व, धेमाजी शाखा के प्रस्ताव पर असमिया भाषा में मारवाड़ी समाज को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। संतोष जी वेद के संपादन में “सम्मेलन समाचार” में असमिया भाषा का एक स्तंभ शुरू हुआ। इसके बाद असमिया साहित्यकारों से लेख आमंत्रित किए गए, और 2019 में “अखमोर मारवाड़ी समाज” नामक ग्रंथ प्रकाशित हुआ। यह सम्मेलन की एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, जिसे आगे बढ़ाना चाहिए।
5️⃣ साहित्यिक समन्वय को प्रोत्साहन
साहित्य आधारित समन्वय का प्रभाव दीर्घकालिक होता है। इसलिए सम्मेलन को साहित्य सृजन हेतु ठोस योजनाएँ बनानी चाहिए, ताकि समाज की सकारात्मक छवि और पहचान को स्थापित किया जा सके।
6️⃣ संस्कृति और परंपरा का संरक्षण
मारवाड़ी समाज केवल आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं, बल्कि परंपरा, संस्कृति और संस्कारों से भी परिपूर्ण है। समाज की उपलब्धियों को संरक्षित करने के लिए मंडल स्तर पर कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ। पिछले अधिवेशन में मंडल स्तरीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शाला का प्रस्ताव पारित हुआ था, लेकिन इसे केवल “ग” मंडल में ही लागू किया गया। इसे व्यापक स्तर पर क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
7️⃣ गृहित प्रस्तावों का क्रियान्वयन
अधिवेशनों में पारित प्रस्तावों को लागू करना आवश्यक है। यदि शाखाओं से प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं होता, तो विषय निर्वाचनी समिति और सभा की प्रासंगिकता समाप्त हो जाएगा ा
विचार करने योग्य और भी कई मुद्दे हैं, लेकिन प्रकाशन की सीमा को देखते हुए इन्हें यहीं समेटता हूँ। अधिवेशन की संपूर्ण सफलता के लिए शुभकामनाएँ एवं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि यह सम्मेलन समाज के लिए ठोस और प्रभावशाली निर्णय ले सके।