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संस्कार, संवेदना और संगठन का जीवंत उत्सव बना मारवाड़ी सम्मेलन का 91वाँ स्थापना दिवस, मंडल- सी की अभिनव पहल

थर्ड आई न्यूज

लखीमपुर से बाबू देव पांडे

मारवाड़ी सम्मेलन के 91वें स्थापना दिवस का पावन अवसर केवल एक औपचारिक तिथि नहीं रहा, बल्कि यह संस्कारों की स्मृति, संगठन की चेतना और भावनात्मक एकता का जीवंत उत्सव बनकर उभरा। यह दिन उन मूल मूल्यों—सेवा, समर्पण और सामाजिक उत्तरदायित्व—की पुनः पुष्टि का अवसर बना, जिन पर यह संगठन दृढ़ता से खड़ा है।

मंडल-सी द्वारा आयोजित यह एकदिवसीय भ्रमण कार्यक्रम संगठनात्मक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण रहा, भावनात्मक रूप से उससे कहीं अधिक गहरा और आत्मीय सिद्ध हुआ। इस अवसर पर प्रांतीय महामंत्री रमेश चांडक, प्रांतीय उपाध्यक्ष छतर सिंह गिड़िया, मंडलीय उपाध्यक्ष माणिक लाल दम्मानी, मंडलीय सहायक मंत्री ओमप्रकाश पचार तथा बंदरदेवा शाखा अध्यक्ष प्रमोद अग्रवाल की उपस्थिति ने कार्यक्रम को दिशा, गरिमा और प्रेरणा प्रदान की।

लालुक : संवाद से विश्वास, विश्वास से संगठन :
25 दिसंबर की सुबह भ्रमण दल के लालुक पहुँचने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि यह केवल एक पड़ाव नहीं, बल्कि भविष्य की नई संभावनाओं की शुरुआत है। आत्मीय संवाद के माध्यम से समाजबंधुओं से जुड़ते हुए यह अनुभव गहराया कि संगठन की जड़ें जितनी गहरी संवाद में होती हैं, उतनी ही मजबूत वे भविष्य में बनती हैं।

लालुक क्षेत्र में पाँच समाजबंधुओं को सम्मेलन से जोड़ने पर सहमति बनी। यह केवल सदस्यता का आंकड़ा नहीं, बल्कि पाँच परिवारों का सम्मेलन परिवार में स्वागत था। अन्य समाज परिवारों से भी संपर्क कर सहयोग का अनुरोध किया गया और यह विश्वास व्यक्त किया गया कि शीघ्र ही पुनः भ्रमण कर यहाँ एक सशक्त शाखा का गठन किया जाएगा।

नाहरलागुन–इटानगर : विचारों का संगम, भावनाओं का प्रवाह :
नाहरलागुन स्थित दिगम्बर जैन मंदिर परिसर का सभागार उस दिन विचारों, भावनाओं और संकल्पों का केंद्र बन गया। इटानगर-नाहरलागुन शाखा एवं महिला शाखा की संयुक्त विचार गोष्ठी में समाजबंधुओं ने खुलकर अपनी जिज्ञासाएँ, चिंताएँ और आशाएँ साझा कीं।

प्रांतीय एवं मंडलीय पदाधिकारियों ने अपने संबोधन में सरल शब्दों में यह स्पष्ट किया कि संगठन की वास्तविक शक्ति पदों में नहीं, बल्कि सहभागिता और सामूहिक प्रयास में निहित है।
यह उपमा सभी के मन में गहराई से उतर गई—

“एक बूँद अकेली कुछ नहीं कर सकती,
पर जब बूँदें मिलती हैं,
तो वे समुद्र बन जाती हैं।”

इस विचार गोष्ठी से शाखा के सदस्यों में संगठन के प्रति नया उत्साह और जिम्मेदारी का भाव जागृत हुआ। पुरुष शाखा में 21 तथा महिला शाखा में 10 आजीवन सदस्य जोड़ने का संकल्प केवल लक्ष्य नहीं, बल्कि सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रतीक बना।

गोहपुर–बिहाली : भक्ति की भूमि पर संगठन की साधना
दोपहर बाद गोहपुर पहुँचना आस्था और संगठन—दोनों का सुंदर संगम सिद्ध हुआ। राम मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति में सहभागिता ने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।

इसी पावन परिवेश में गोहपुर-बिहाली शाखा द्वारा स्थापना दिवस विशेष विचार गोष्ठी एवं नई महिला शाखा का गठन संगठन के इतिहास में एक भावनात्मक मील का पत्थर बन गया। दीप प्रज्वलन, गणेश वंदना और मातृशक्ति की सक्रिय उपस्थिति ने यह स्पष्ट किया कि महिलाओं की सहभागिता से संगठन की गति और शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

महिला शाखा गठन के अवसर पर 28 बहनों का एक साथ आगे आना इस बात का सशक्त प्रमाण बना कि संस्कार और सेवा की भावना आज भी समाज की आत्मा है। यह क्षण केवल शपथ का नहीं, बल्कि सम्मेलन परिवार के विस्तार का उत्सव था।

नारायणपुर : एक बीज, जो कल वटवृक्ष बनेगा :
नारायणपुर में चांडक परिवार से हुई चर्चा ने यह भरोसा दिया कि संगठन की यात्रा निरंतर आगे बढ़ रही है। तदर्थ समिति का गठन और जनवरी में शाखा गठन का आश्वासन इस तथ्य को रेखांकित करता है कि जहाँ संवाद होता है, वहाँ संगठन स्वतः आकार लेता है।

सायंकाल बंदरदेवा में आयोजित संयुक्त बैठक औपचारिक सभा न होकर परिवारिक संवाद में परिवर्तित हो गई। महिलाओं और पुरुषों की खुली अभिव्यक्ति, अनुभवों की साझेदारी और स्थापना दिवस का सामूहिक उत्सव इस बात का प्रमाण बना कि सम्मेलन केवल एक संस्था नहीं, बल्कि भावनात्मक रिश्ता है।

घरेलू केक, स्नेहपूर्ण आतिथ्य और नए सदस्यों का आत्मीय स्वागत—इन छोटे-छोटे पलों ने पूरे दिन को अविस्मरणीय बना दिया।

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