नरकासुर वध को सेलिब्रेट करने के लिए मनाई जाती है नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली

प्रमोद तिवाड़ी

थर्ड आई न्यूज

आज छोटी दीपावली है जो कि मुख्य दीपावली से ठीक एक दिन पहले मनाई जाती है. गावं – देहातों में आज के दिन घर की महिलाओं अधिकांशतः गोबर अथवा कच्ची मिट्टी का दीप जलाकर घर में मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की तरह मुँह करके रख देती हैं.

आम धारणा है कि दीपावली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी होती है. इसीलिए, इस दिन अपने पूर्वजों अथवा यमराज के लिए दीप जलाया जाता है जिससे कि घर में यमराज का भय नहीं रहता है. चूंकि वह दीप यमराज के लिए जलाया जाता है इसीलिए उस दीप का मुँह दक्षिण दिशा की ओर रखा जाता है.

असल में छोटी दीपावली अथवा नरक चतुर्दशी का त्योहार स्वर्ग/नरक वाले नरक के कारण नहीं बल्कि नरकासुर नामक राक्षस से मुक्ति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था. उन्होंने नरकासुर के बंदी गृह में कैद 16 हजार से ज्यादा कन्याओं/महिलाओं को आजाद कराया था. उस समय द्वारिका के सभी नागरिकों ने अपने अपने घरों के आगे दीपक जलाकर नरकासुर के अंत होने की खुशियाँ मनाई थी. उसी की याद के तौर पर आज भी हमलोग नरक दीपावली अथवा छोटी दीपावली मनाते हैं.

लेकिन, शायद इस दीपावली के नाम में नरक आने के कारण लोगों ने अनजाने में इसे स्वर्ग-नरक एवं मृत्यु के देवता यमराज से जोड़ दिया. जबकि, यह त्योहार यमराज अथवा हमारे पूर्वज नहीं, बल्कि राक्षस नरकासुर के अंत से संबंधित है.

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि…. हालांकि, हम धनतेरस, छोटी दीपावली एवं दीपावली को एक ही त्योहार का अंग मानते हैं और यही जानते हैं कि दीपावली 3 दिन का त्योहार है. जबकि, ऐसा है नहीं.

असलियत में ये तीन अलग अलग घटनाओं के कारण मनाया जाता है, जिसके कालखंड से लेकर प्रयोजन तक बिल्कुल अलग है. जहां धनतेरस सतयुग में घटी समुद्रमंथन की घटना एवं विश्व के पहले आयुर्वेदाचार्य भगवान धन्वंतरि के प्रकट दिवस की याद में मनाया जाता हैं. छोटी अथवा नरक दिवाली द्वापर युग में घटित नरकासुर के अंत के याद के तौर पर मनाते हैं. वहीं बड़ी दीपावली त्रेतायुग में भगवान राम के 14 वर्षों के बाद अयोध्या वापसी की खुशी में मनाई जाती है . लेकिन, ये संयोग ही है कि विभिन्न युगों में घटित ये घटनाएं संयोग से एक ही समय में घटित हुई इसीलिए जानकारी के अभाव के कारण अधिकांश लोग इसे एक ही त्योहार मानकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं. जबकि, यदि हम अपने हर त्योहार का प्रयोजन जानकर अथवा त्योहार के ओरिजिन को समझ कर त्योहार मनायेंगे तो निश्चय ही हमारी खुशी दुगुनी हो जाएगी.

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