मारवाड़ी सम्मेलन, धेमाजी व ज्येष्ठ नागरिक सम्मेलन द्वारा साहित्य सम्मान प्रदान, सम्मानित हुए जुनमोनी बोरा व डा. दिपेन नाथ

थर्ड आई न्यूज

धेमाजी I स्वभावगत रूप से स्थानीय समाज -संस्कृति – परंपरा के प्रति समर्पित मारवाड़ी समाज की महान असमिया संस्कृत के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। वर्तमान की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यह समाज अपना कर्तव्य बखूबी निभाते आ रहा है। आपस में एक दूसरे को समझना आज समय की मांग है I आपसी समन्वय के बिना असम की उन्नति कदापि संभव नहीं । जोरहाट चिनामारा महाविद्यालय के अध्यक्ष डा. अंजन सइकिया ने ज्योति प्रसाद अग्रवाल को स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों कि प्रत्याहवान स्वीकार करते हुए जो भी किया वही असमिया समाज के लिए एक-एक कर बड़ी उपलब्धियां बनती गई। डा. सइकिया ने मारवाड़ी सम्मेलन व ज्येष्ठ नागरिक सम्मेलन के दो दिवसीय कार्यक्रम के तहत अनुष्ठित ज्योति दिवस के दूसरे दिन की कार्यसूची हरिराम खंडेलिया साहित्य पुरस्कार व गुगनराम राठी साहित्य पुरस्कार प्रदान समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में संबोधित कर रहे थे। इसके पूर्व मारवाड़ी सम्मेलन के मंडलीय उपाध्यक्ष छत्तरसिंह गिडि़या द्वारा दीप प्रज्वलन के बाद नंदेश्वर बोरगोहांई की अध्यक्षता में अनुष्ठित समारोह में दाता परिवार की ओर से उमेश खंडेलिया ने कहा कि स्वर्गीय हरीराम खंडेलिया जहां एक ऋषि तुल्य आध्यात्मिक व संगठन प्रेमी थे, वहीं गूगन राम राठी निष्पक्ष, साहसी, दयालु प्रवृत्ति के व्यवसायी के रूप में जाने जाते थे I उन्हें धेमाजी का टाइगर भी कहा जाता था। इन दोनों में मनिषियों की स्मृति में प्रचलित साहित्य पुरस्कार असमिया साहित्य जगत में प्रेरणात्मक जागरण व वातावरण के सृजन के उद्देश्य से दिया जाता है।

अवगुंठन नामक जनप्रिय उपन्यास सहित कई शिशु साहित्य ग्रंथ की लेखिका तथा गुगनराम राठी स्मृति पुरस्कार से पुरस्कृत जुनमोनी बोरा ने अपने संबोधन में कहा कि अपनी रुचि और योग्यता को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर आगे बढ़ने का प्रयास निश्चित सफलता का आधार होता है। उन्होंने अपने स्वयं को उदाहरण बताते हुए कहा कि मारवाड़ी सम्मेलन व ज्येष्ठ नागरिक सम्मेलन जैसे स्व प्रतिष्ठित संगठनों की स्वीकृति मेरे लिए स्वप्न जैसी बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने ज्योति गीत के जरिए रूप कुंवर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
हरिराम खंडेलिया साहित्य सम्मान को प्राप्त करने वाले डा. दीपेन नाथ (जोरहाट चिन्नमारा महाविद्यालय) ने अपने संबोधन में कहा कि आप जैसे प्रतिष्ठितों द्वारा मुझे जो स्नेह व आशीर्वाद दिया है, उससे मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। मैं आज आप सभी को आश्वासन देना चाहता हूं कि मैं आपके इस सम्मान की इज्जत रखूंगा। धेमाजी तथा जोरहाट ही नहीं, आपसी समन्वय का संदेश केवल असम ही नहीं भारत व विश्व तक विस्तारित हो, मेरा भी यह प्रयास रहेगा। मारवाड़ी समाज के बारे में असमिया साहित्य की शून्यता को दूर करने के लिए जो प्रयास उमेश खंडेलिया ने किया है, वह अतुलनीय है, अनुकरणीय है।
कार्यक्रम के दौरान बीहपुरिया से आए कवि जुगल माहेश्वरी ने एक स्वरचित कविता का पाठ किया वहीं बालक गर्वित खंडेलिया ने ज्योति प्रसाद का एक शिशु गीत गया।

मारवाड़ी सम्मेलन के मंडलीय सचिव राजकुमार सराफ ने मारवाड़ी सम्मेलन की स्थापना व समाज, जनकल्याण में संलग्नता के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आम लोगों की धारणा के विपरीत मारवाड़ी सम्मेलन ने साहित्य सृजन को भी महत्व देते हुए पिछले 5 वर्षों के सिमित काल में ही पांच पुस्तकों का प्रकाशन किया है, वहीं साहित्य, पत्रकारिता, क्रिड़ा, जन सेवा आदि क्षेत्रों में काम करने वाले को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कई सम्मान – पुरस्कार की भी शुरुआत की है । धेमाजी जिला साहित्य सभा के अध्यक्ष बिनोद गोगोई ने अपने परिवारिक अनुभव को साझा करते हुए बताया कि मारवाड़ी अन्यों की अपेक्षा अधिक मददगार होतें है।
समारोह के अन्यतम विशिष्ट अतिथि मुरकोंगसेलेक महाविद्यालय के अवकाशप्राप्त अध्यक्ष डॉ जयकुमार दोले ने आज भी मारवाड़ी समाज में अनेकों “ज्योतिप्रसाद” होने की संभावना जताते हुए कहा कि ऐसे ढेरों उदाहरण हमारे सामने है।

अंत में सभा अध्यक्ष नंदेश्वर बोरगोहाईं के अध्यक्षीय मंतव्य के पश्चात जातीय संगीत के साथ समारोह का समापन किया गया।

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