पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी युवा मंच: विभाजन की कगार पर संगठन और पुनर्गठन की राह

प्रमोद तिवाड़ी

मारवाड़ी युवा मंच अखिल भारतीय स्तर पर प्रवासी मारवाड़ी समाज के युवाओं का प्रतिनिधि संगठन है, जिसकी नींव असम के गुवाहाटी में रखी गई थी। इसकी जड़ें पूर्वोत्तर भारत में इतनी गहरी थीं कि मंच के अधिकतर सिद्धांतकार, विचारक और मार्गदर्शक इसी क्षेत्र से रहे हैं। मंच ने वर्षों तक मारवाड़ी समाज के हितों की रक्षा की, उनकी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान किया, और युवाओं को समाज सेवा से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया। परंतु दुर्भाग्य से, आज वही प्रदेश, जिसने इस संगठन को जन्म दिया, उसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है।

पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी युवा मंच के भीतर मतभेद कोई नई बात नहीं है। यह एक स्वाभाविक स्थिति है, पर किसी भी स्तर पर मन भेद नहीं होना चाहिए I वैसे भी लोकतांत्रिक संगठनों में विभिन्न विचारधाराओं का होना सकारात्मक संकेत है I इससे विचारों का प्रवाह बना रहता है और नई सोच सामने आती है। परंतु पिछले चार-पांच वर्षों में मंच में व्याप्त मतभेद केवल वैचारिक असहमति तक सीमित नहीं रहे, बल्कि ये व्यक्तिगत अहं की लड़ाई में बदल गए हैं । मंच अब दो गुटों में विभाजित हो चुका है, जो एक-दूसरे के कट्टर विरोधी बन चुके हैं। संगठन में शत्रुता इस हद तक पहुंच चुकी है कि एक गुट दूसरे की विफलता के लिए प्रयत्नशील है, भले ही इससे पूरा मंच ही कमजोर क्यों न हो जाए।

विडंबना यह है कि संगठन के वे वरिष्ठ नेता, जो वर्षों पहले आयु सीमा पार कर चुके हैं और अब संगठन का हिस्सा भी नहीं होने चाहिए, इस गुटबाजी के पीछे सबसे बड़े सूत्रधार बने हुए हैं। वे अपने प्रभाव का उपयोग करके इस संघर्ष को और बढ़ावा दे रहे हैं, बजाय इसके कि वे संगठन में शांति और एकता स्थापित करने का प्रयास करें। यह एक गंभीर समस्या है, क्योंकि जब वरिष्ठ और अनुभवी लोग ही संगठन को विभाजन की ओर धकेलेंगे, तो युवा कार्यकर्ताओं से संगठन को एकजुट रखने की अपेक्षा करना निरर्थक होगा। यहां इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मंच के “नाती-पोते वाले” युवाओं की संगठन की गतिविधियों में बेजा दखलंदाजी से असली युवाओं की युवा सुलभ आक्रामकता और ऊर्जा प्रभावित होती है I

बहरहाल, गत 19 मार्च को निचले असम के बोंगाईगांव शहर में पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी युवा मंच का प्रांतीय अधिवेशन संपन्न हुआ। इस अधिवेशन को कई कारणों से याद किया जाएगा, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण यह था कि तमाम तरह की विसंगतियों एवं विरोधाभासों के बावजूद संगठन के चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से पूरे हो गए। चुनावी प्रक्रिया में बाधाएं जरूर थीं I चुनाव पूर्व माहौल बेहद विषाक्त हो गया था। दोनों गुट मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हरसंभव तरीके अपना रहे थे। आरोप-प्रत्यारोप और व्यक्तिगत हमलों का दौर चला, जिससे संगठन की गरिमा को ठेस पहुंची। इसके बावजूद, चुनाव प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हुई, और राज चौधरी को नया अध्यक्ष चुना गया। इसके अलावा मंडलीय उपाध्यक्ष भी लोकतांत्रिक तरीके से चुन लिए गए I संगठन में लोकतंत्र की विजय के लिए दोनों तरफ के युवाओं को बधाई I

राज चौधरी के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती मंच में एकता स्थापित करने की होगी। उन्हें कटुता और विभाजन को समाप्त कर, संगठन को पुनः सशक्त और प्रभावी बनाना होगा। यह आसान कार्य नहीं होगा, क्योंकि दोनों गुटों के बीच की खाई काफी गहरी हो चुकी है। इसे पाटने के लिए धैर्य, दूरदर्शिता और नेतृत्व कौशल की आवश्यकता होगी। उन्हें बड़ा दिल दिखाते हुए संगठन के भीतर संवाद को प्राथमिकता देनी होगी, जिससे आपसी मनमुटाव को दूर किया जा सके।

जहां यह अधिवेशन शांतिपूर्ण चुनावी प्रक्रिया के लिए सराहा जा सकता है, वहीं यह एक बड़े अवसर को गंवा भी बैठा। अधिवेशन का उद्देश्य केवल चुनाव करवाना नहीं होता, बल्कि यह किसी भी संगठन की भविष्य की दिशा तय करने का अवसर होता है। यह वह अवसर होता है जब प्रांत भर की विभिन्न शाखाओं के प्रतिनिधि एक स्थान पर एकत्रित होते हैं I इस मौके का सदुपयोग पिछले सत्र के खोया- पाया के आलोक में भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा तैयार करने में किया जा सकता है I परंतु बोंगाईगांव में न तो मंच की समस्याओं की और न ही समाज की चुनौतियां पर कोई ठोस चर्चा हुई।

असम में प्रवासी मारवाड़ी समाज की स्थिति लगातार चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। राज्य में कतिपाई कारणों से उग्र क्षेत्रीयतावाद बढ़ा है, जिसका प्रभाव मारवाड़ी समाज पर भी पड़ रहा है। पिछले वर्ष ऊपरी असम के शिवसागर शहर में मारवाड़ी समाज के लोगों को कुछ क्षेत्रीयतावादी संगठनों ने घुटनों के बल बैठकर माफी मांगने के लिए मजबूर किया था। यह घटना बेहद शर्मनाक थी, और इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी। घटना के बाद असम का मारवाड़ी समाज पूरी तरह दिशाहारा नजर आया I परंतु इस अधिवेशन में इस गंभीर विषय पर कोई ठोस विमर्श नहीं हुआ। इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए क्या रणनीति अपनाई जाए, इस पर कोई चर्चा नहीं की गई।

इसी तरह , राज्य सरकार असम समझौते की धारा 6 को लागू करने की योजना बना रही है, जो राज्य में एक संरक्षणवादी व्यवस्था ( protectionist regime) स्थापित कर सकती है। साथ ही, भूमि अधिकारों से संबंधित कानूनों में भी बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं, जिससे प्रवासी समुदायों, विशेष रूप से मारवाड़ी समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह अधिवेशन इस विषय पर चर्चा करने का आदर्श मंच था, परंतु ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं पड़ा।

मारवाड़ी समाज के भीतर विवाह को लेकर भी कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। पहले, समाज में विवाह के मामलों में केवल पारिवारिक पसंद को ही महत्व दिया जाता था, और युवक-युवतियों की पसंद की कोई भूमिका नहीं होती थी। अब समय बदला है, और परिवारों ने युवाओं की पसंद को मान्यता देना शुरू किया है। हालांकि, समाज की संकीर्ण मानसिकता अभी भी पूरी तरह नहीं बदली है। विवाह संबंधों में अब भी खानदान, घराने और तिजोरियों को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा, एक नया चलन उभर रहा है, जिसमें बड़े शहरों की लड़कियां छोटे शहरों या कस्बों के लड़कों से विवाह करने में रुचि नहीं दिखातीं। इसके पीछे कारण यह है कि वे आर्थिक स्वावलंबन और करियर की संभावनाओं को अधिक महत्व देने लगी हैं। यह सोच कोई समस्या नहीं है, बल्कि यह एक स्वाभाविक सामाजिक बदलाव है। परंतु, इस सोच के परिणामस्वरूप छोटे शहरों के योग्य लड़कों को उपयुक्त जीवनसाथी मिलना मुश्किल हो रहा है। इस समस्या का समाधान तब संभव होगा, जब समाज अंतर्घटकीय विवाह को सहज रूप से स्वीकार करेगा। मारवाड़ी युवा मंच इस विषय पर गहन विचार विमर्श के बाद अधिवेशन में अंतर्घटकीय विवाहों को प्रोत्साहन देने संबंधित प्रस्ताव ले सकता था I

इसके अतिरिक्त, समाज में दिखावे की प्रवृत्ति एक नई दिशा में बढ़ रही है। अब शोक सभाएं भी इस प्रवृत्ति से अछूती नहीं रह गई हैं। पहले, मृत्यु के उपरांत श्रद्धांजलि सभाएं सादगी और शांति के साथ आयोजित की जाती थीं। परंतु अब इनका आयोजन आलीशान होटलों और भव्य सभागारों में होने लगा है, जहां संगीत, भोजन और सजावट पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यह प्रवृत्ति न केवल मृत्यु उपरांत आयोजित होने वाली बैठकों की मूल भावना के विपरीत है, बल्कि यह समाज को गलत दिशा में ले जा रही है। समाज में तेजी से उभर रही इस कुरीति पर अंकुश लगाने की दिशा में मंच सार्थक पहल कर सकता था I

चर्चा तो इस बात पर भी होनी चाहिए थी कि समाज की समस्याओं को दूर करने के लिए गठित मारवाड़ी युवा मंच क्यों खुद समस्याओं में फंसता जा रहा है? संगठन को समस्याओं से कैसे निकाला जाए? विघटन और विभाजन के कगार पर आ चुके संगठन में एकता के प्रयास कैसे हो ? पर दुर्भाग्यवश इस दिशा में भी कोई गंभीर प्रयास होता नहीं दिखा I उपरोक्त केवल उदाहरण भर है I इनके अलावा मारवाड़ी समाज में कई अन्य कुरीतियां एवं समस्याएं हैं I समाज को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाले कई मुद्दे हैं, जो चर्चा की मांग करते हैं I उन पर सार्थक विमर्श तो दूर, ऐसा कोई आग्रह भी अधिवेशन के दौरान प्रदर्शित नहीं किया गया I

अधिवेशन में समय इन गंभीर विषयों पर चिंतन के बजाय कवि सम्मेलन और भाड़े के मोटिवेशनल स्पीकर के भाषण में जाया कर दिया गया। ऐसे वक्ता, जो मंच और प्रवासी मारवाड़ी समाज की वास्तविक समस्याओं से अनजान होते हैं, केवल सतही बातें करते हैं, जुमले उछालते हैं, अपनी मोटी फीस लेते हैं और चले जाते हैं। यह अधिवेशन, जो समाज की समस्याओं के समाधान का एक मंच होना चाहिए था, उसे मात्र एक औपचारिक आयोजन बना दिया गया।

अब सवाल यह उठता है कि वर्तमान संकट से मंच को कैसे उबारा जाए। इसका एकमात्र उपाय है कि संगठन को पुनः एकजुट किया जाए और इसके मूल उद्देश्यों की ओर लौटाया जाए। गुटबाजी को समाप्त कर संगठन के भीतर संवाद को बढ़ावा दिया जाए। समाज की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए और ठोस नीतियां बनाई जाएं। वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका में रहना चाहिए, न कि गुटबाजी को बढ़ावा देने वाली स्थिति में।

यदि पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी युवा मंच अपनी खोई हुई दिशा को पुनः प्राप्त कर ले, तो यह न केवल पूर्वोत्तर भारत में मारवाड़ी समाज को संगठित कर सकता है, बल्कि अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच को भी नई ऊर्जा प्रदान कर सकता है। संगठन को अब आत्ममंथन करके यह तय करना होगा कि वह अपनी ऊर्जा आंतरिक कलह में नष्ट करेगा या समाज के हित में कार्य करेगा।

वहीं प्रमोद सराफ जैसे मार्गदर्शकों को सच्ची श्रद्धांजलि अधिवेशन की थीम “प्रमोदम” रखने से नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने से होगी कि मंच अपने उद्देश्यों की ओर लौटे और अपनी साख और धाक फिर से स्थापित करें I

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