भारत के दावे पर भड़के चीन-पाकिस्तान,आसिम मुनीर के साथ शी जिनपिंग की आंखें भी हुईं लाल

थर्ड आई न्यूज

पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर और चीन ने कहा है कि भारत के साथ हाल में हुए सैन्य संघर्ष के दौरान इस्लामाबाद को बाहरी समर्थन मिलने का दावा ‘तथ्यात्मक रूप से गलत’ है। इस्लामाबाद स्थित राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय में स्नातक अधिकारियों को संबोधित करते हुए मुनीर ने भारत पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि पाकिस्तान की संप्रभुता को कमजोर करने के किसी भी दुस्साहस या प्रयास का बिना किसी संकोच के त्वरित और दृढ़ प्रतिक्रिया के साथ जवाब दिया जाएगा। पाकिस्तानी सेना के प्रमुख ने कहा, ‘‘पाकिस्तान के सफल ऑपरेशन बन्यनम मार्सूस में बाहरी समर्थन के बारे में लगाए गए आरोप गैर-जिम्मेदाराना और तथ्यात्मक रूप से गलत हैं तथा दशकों के रणनीतिक विवेक से विकसित स्वदेशी क्षमता और संस्थागत लचीलेपन को स्वीकार करने में उसकी पुरानी अनिच्छा को दर्शाते हैं।’’ उन्होंने कहा, ”विशुद्ध रूप से द्विपक्षीय सैन्य संघर्ष में अन्य देशों को भागीदार बताना भी खेमेबाजी की राजनीति करने का एक घटिया प्रयास है…।’’

आपको याद दिला दें कि पिछले सप्ताह भारतीय सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने कहा था कि बीजिंग ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को सक्रिय सैन्य सहायता प्रदान की और संघर्ष को विभिन्न हथियार प्रणालियों के परीक्षण के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया। मुनीर ने दावा किया कि भारत के ‘संकीर्ण आत्म-संरेखण’ पर आधारित रणनीतिक व्यवहार के विपरीत, पाकिस्तान ने सैद्धांतिक कूटनीति के आधार पर स्थायी साझेदारी स्थापित की है, जो पारस्परिक सम्मान और शांति पर आधारित है तथा उसने क्षेत्र में स्थिरता लाने वाले के रूप में खुद को स्थापित किया है। मुनीर ने कहा, ”हमारे रिहायशी इलाकों, सैन्य ठिकानों, आर्थिक केंद्रों और बंदरगाहों को निशाना बनाने की किसी भी कोशिश का तुरंत ही कड़ा जवाब दिया जाएगा।’’ उन्होंने कहा कि युद्ध मीडिया की बयानबाजी, आयातित फैंसी हार्डवेयर या राजनीतिक नारेबाजी से नहीं जीते जाते, बल्कि विश्वास, पेशेवर क्षमता, परिचालन स्पष्टता, संस्थागत ताकत और राष्ट्रीय संकल्प के माध्यम से जीते जाते हैं।

इसके अलावा, भारत के दावे को न केवल पाकिस्तान ने बल्कि चीन ने भी जोरदार तरीके से खारिज कर दिया है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने प्रेस ब्रीफिंग में इन दावों को “पूरी तरह निराधार और भ्रामक” बताया। उन्होंने यह दोहराया कि चीन क्षेत्रीय शांति बनाए रखने में विश्वास रखता है और दक्षिण एशिया में किसी भी तरह के सैन्य संघर्ष में पक्षपात नहीं करता।

इस प्रकरण का कूटनीतिक विश्लेषण करें तो सबसे पहले यदि भारत की दृष्टि से देखें तो इंडिया के लिए पाकिस्तान और चीन के बीच सैन्य सहयोग एक दीर्घकालिक सुरक्षा चिंता का विषय रहा है। ग्वादर बंदरगाह, CPEC और संयुक्त सैन्य अभ्यासों ने इस आशंका को और गहरा किया है कि संकट की घड़ी में पाकिस्तान को चीन से रणनीतिक समर्थन मिल सकता है। ऐसे में कोई भी अप्रत्यक्ष या संभावित सहायता भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान को सतर्क कर देती है।

वहीं चीन फिलहाल वैश्विक मंचों पर खुद को एक स्थिरता प्रदाता के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। भारत-पाक तनाव में खुला हस्तक्षेप या समर्थन उसकी इस छवि को धूमिल कर सकता है। साथ ही, भारत के साथ व्यापारिक और सीमा-संबंधी संबंधों को ध्यान में रखते हुए, चीन ऐसी किसी भी धारणा से बचना चाहता है जो उसे भारत विरोधी शक्ति के रूप में प्रस्तुत करे।

दूसरी ओर, हालाँकि पाकिस्तान चीन को “आयरन ब्रदर” कहता है और CPEC जैसे बहु-आयामी सहयोग में भागीदार है, लेकिन सैन्य संघर्षों में वह चीन को प्रत्यक्ष रूप से खींचने से कतराता है। ऐसा करना अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी वैधता को नुकसान पहुँचा सकता है।

बहरहाल, भारत-पाक सैन्य तनाव की पृष्ठभूमि में चीन के हस्तक्षेप या सहायता की बात दोनों देशों द्वारा नकार दी गई है। लेकिन यह विवाद यह ज़रूर दर्शाता है कि दक्षिण एशिया की सुरक्षा व्यवस्था अब केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि त्रिपक्षीय या बहु-ध्रुवीय संदर्भ में देखी जा रही है। भारत को अब ऐसी स्थितियों में केवल सैन्य ताकत नहीं, बल्कि कूटनीतिक स्पष्टता, सूचना युद्ध और रणनीतिक साझेदारियों को भी ध्यान में रखकर अपनी नीति बनानी होगी।

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