राजेश मालपानी : एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व बिना चिट्ठी-संदेश इस जहां से चला गया

थर्ड आई न्यूज

उमेश खंडेलीया, धेमाजी

“मैं स्वयं भी एक पत्रकार रहा हूं। पत्रकारों की जीवन पद्धति और समस्याओं से वाकिफ भी हूं ।
मेरे पिताजी ने हमें शिक्षा दी है कि अपनी आय से समाज की सेवा करने के प्रयास को अपने जीवन में हरदम बनाए रखना। उनके आदेश और भावना को मेरे और मेरे परिवार पर काफी प्रभाव रहा है I ईश्वर की दया और आप सब के आशीर्वाद से जो कुछ मुझसे बन पड़ता है मैं जनता और समाज की सेवा में अर्पण कर देता हूं । मैं कोई उद्योगपति नहीं और न ही करोड़ों कमाने वाला व्यवसायी हूं, फिर भी पूर्वजों के संस्कार और परिवार की सद्भावना मुझे ऐसा करने के लिए प्रेरित करती रहती है I” धेमाजी मेरे पिता की कर्म स्थली रही है और आज उस पुण्य भूमि पर आप लोगों के बीच स्वयं को उपस्थित पाकर मैं अपने आप को सौभाग्यवान समझता हूं ।

उपरोक्त उद्गार लखीमपुर के विशिष्ट समाज संगठक कर्मयोगी राजेश मालपानी के है। ऐसे प्रेरणास्पद, समाज को जागृत करने वाले भावों के वाहक आज के इस भौतिक युग में बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।

मालपानी जी ने देश व समाज सेवा के लिए स्वत: जागृत होने का आह्वान करते हुए उपरोक्त विचार 2022 में धेमाजी में पत्रकार अभिनंदन समारोह में अपने सम्बोधन के दौरान रखे थे।
उनके ये विचार, उनके संस्कार, उनकी मानसिकता को समझने के लिए काफी है ।

किसी भी सामाजिक मुद्दे पर बिना किसी शर्त व स्वार्थ के तत्काल सहयोग के लिए हाथ बढानेवाला एक साथी आज बगैर किसी संदेश, भूमिका के हम सभी को छोड़कर अनजान डगर पर कभी नहीं लौट कर आने की शर्त पर चला गया।

मैने अपने सामाजिक क्षेत्र के 45 वर्षों के सफर के दौरान बड़े बड़े धनकुबेरों की समाज कल्याणकारी आर्थिक सहभागिता को देखा और निकटता से समझने का प्रयास भी किया है। अग्रज स्वरूप बंधुवर राजेश मालपानी की आर्थिक सहभागिता का स्वरूप कुछ हटकर ही महसूस किया है।
बताना आवश्यक समझता हूँ कि राजेश जी ऐसे धनाड्य- धनकुबेर भी नहीं थे, परंतु उन्होंने अर्जित धन का सदुपयोग करते हुए भरपूर आनंद लिया है।

“जनकल्याण” लायंस क्लब, विद्या भारती, शंकरदेव शिशु निकेतन, मारवाड़ी सम्मेलन, पूप्रमास शिक्षाकोष, श्री कृष्ण गौशाला आदि अर्धशताधिक संगठन/ संस्थानों में निश्चित रूप से उनकी सहभागिता की महक लंबे समय तक बनी रहेगी।

आज से करीब 38 वर्ष पूर्व मेरे अग्रज नंदकिशोर राठी ने उनसे मिलवाया था। उनकी जीवन शैली ने मुझे उनका मुरीद बना दिया। आज ईश्वर ने हम सभी के स्नेह- प्यार- आत्मीयता को दरकिनार करते हुए उन्हें अपने पास बुला लिया, यह उनके सभी आत्मीय जनों के लिए हृदयविदारक है, परंतु नियति को स्वीकारना सभी की मजबूरी है।
बहरहाल, वे जहां भी रहे शांति के साथ रहे I

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