हनुमान जी : कुछ अनकही, कुछ अनसुनी, कुछ अनछुई

प्रमोद तिवाड़ी
हनुमान वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना के छह पुत्रों में सबसे बड़े और पहले पुत्र हैं। हनुमान जी के भाइयों के नाम मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान हैं I हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ था । हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। उन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। विभिन्न राम कथाओं में हनुमान के चरित्र व उनके कृतित्व को बखूबी उकेरा गया है, इसके बारे में हम सभी जानते भी है I लिहाजा उन्हें दोहराने की जरूरत नहीं है I इस आलेख में हनुमान जी के जीवन से संबंधित कुछ अनकही और अनछुई बातों का जिक्र करने का प्रयास किया गया है I
ज्योतिषियों की सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था I हनुमान जी के जन्म के संबंध में कई पौराणिक आख्यान एवं जनश्रुतियां प्रचलित हैं I आगे की पंक्तियों में संक्षेप में सिलसिलेवार उन पर प्रकाश डाला गया है :
एक पौराणिक स्रोत के अनुसार एक बार इंद्र देव ऋषि दुर्वासा द्वारा स्वर्ग में आयोजित एक औपचारिक बैठक में भाग ले रहे थे। वहां किसी गंभीर विषय पर मंत्रणा चल रही थी। पुंजिकस्थली नाम की एक अप्सरा अनजाने में उस बैठक में विघ्न पैदा कर रही थी । वह बार-बार अंदर-बाहर आ-जा रही थी I ऋषि दुर्वासा ने उसे ऐसा नहीं करने को कहा। पर उसने ऋषि दुर्वासा की कही बातों को अनसुना कर दिया। यह देख कर क्रोधी ऋषि दुर्वासा नाराज हो गए। उन्होंने उसे श्राप देते हुए कहा कि तुमने एक बंदर की तरह व्यवहार किया है। इसलिए तुम उसी प्रकार एक बंदरिया बन जाओ। ऋषि दुर्वासा के शाप की सुनकर अप्सरा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह उनसे रोते हुए क्षमा मांगने लगी। इस पर द्रवित होकर ऋषि ने उसे इच्छानुसार रूप धारण करने का वर दिया I उन्होंने कहा कि वानर के रूप में उसके गर्भ से जो पुत्र होगा, वह महान शक्तिशाली व भगवान श्री राम का प्रिय होगा I कुछ वर्षों बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी के रूप में जन्म लिया I उनका नाम अंजनी रखा गया I विवाह योग्य होने पर पिता ने अपनी सुंदर पुत्री का विवाह महान पराक्रमी कपि शिरोमणि वानर राज केसरी से कर दिया I इस रूप में पुंजिकस्थली माता अंजनी कहलाईं I कालांतर में उनके गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ I
रामचरितमानस में हनुमान जी के जन्म के संबंध में बताया गया है कि हनुमान जी का जन्म ऋषियों द्वारा दिए गए वरदान से हुआ था। मान्यता है कि एक बार वानरराज केसरी प्रभास तीर्थ के पास पहुंचे। वहां उन्होंने ऋषियों को देखा I वे समुद्र के किनारे पूजा कर रहे थे। तभी वहां एक विशाल हाथी आया और ऋषियों की पूजा में खलल डालने लगा। सभी उस हाथी से बेहद परेशान हो गए थे। वानरराज केसरी यह दृश्य पर्वत के शिखर से देख रहे थे। उन्होंने विशालकाय हांथी के दांत तोड़ दिए और उसे मौत के घाट उतार दिया। ऋषिगण वानरराज से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छानुसार रुप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान पुत्र का वरदान दिया।
भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में लिया था जन्म :
एक अन्य कथा के अनुसार, माता अंजनी एक दिन मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर की ओर जा रही थीं। उस समय सूरज डूब रहा था। अंजनी डूबते सूरज की लालिमा को निहारने लगी। उसी समय तेज हवा चलने लगी और उनके वस्त्र उड़ने लगे। हवा इतनी तेज थी वो चारों तरफ देख रही थीं कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। लेकिन उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया। हवा से पत्ते भी नहीं हिल रहे थे। तब माता अंजनी को लगा कि शायद कोई मायावी राक्षस अदृश्य होकर यह सब कर रहा था। उन्हें क्रोध आया और उन्होंने कहा कि आखिर कौन है ऐसा जो एक पतिपरायण स्त्री का अपमान कर रहा है। तब पवन देव प्रकट हुए और हाथ जोड़ते हुए अंजनी से माफी मांगने लगे। उन्होंने कहा कि ऋषियों ने आपके पति को मेरे समान पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया है, इसलिए मैं विवश हूं और मुझे आपके शरीर को स्पर्श करना पड़ा। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा। उन्होंने यह भी कहा कि मेरे स्पर्श से भगवान रुद्र आपके पुत्र के रूप में प्रविष्ट हुए हैं। वही आपके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। इस तरह वानरराज केसरी और माता अंजनी के यहां भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया। एक दूसरी मान्यता यह है कि पवन ने अंजनी के कान के रास्ते शरीर में प्रवेश किया और वह गर्भवती हो गईं I इस कथा से यह बात स्थापित होती है कि पवन देव हनुमान जी के जैविक पिता थे तथा केसरी ने उनका पालन-पोषण किया था I
एक अन्य पौराणिक आख्यान के अनुसार एक बार भगवान शिव ने विष्णुजी को उनके मोहिनी रूप में प्रकट होने की इच्छा व्यक्त की, जो उन्होंने समुद्र मंथन के समय सुर और असुरों को दिखाया था। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी कामातुर हो गए और उन्होंने अपना वीर्यपात कर दिया। पवनदेव ने यह वीर्य राजा केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। इससे वह गर्भवती हो गईं और हनुमानजी का जन्म हुआ।
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक हनुमान के पिता केसरी बृहस्पति पुत्र थे I केसरी स्वयं राम की सेना के साथ मिलकर रावण के खिलाफ लड़े थे I अंजनी और केसरी ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की उपासना की थी I उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ही उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था I
एक कहानी में ऐसा बताया जाता है कि महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त खीर अपनी तीनों रानियों में बांटी थी I इस खीर का एक भाग गरुड़ ( कई कथाओं में गरुड़ की जगह कौवे का जिक्र मिलता है ) उठाकर ले गया I उड़ते-उड़ते वह पक्षी देवी अंजनी के आश्रम में पहुंच गया I वहां माता अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थीं I उसी दौरान पक्षी के मुंह से खीर अंजनी के हाथों पर जा गिरी I उन्होंने उसे शिव का प्रसाद मानकर ग्रहण कर लिया I इस प्रसाद के प्रभाव से और ईश्वर की कृपा से माता अंजनी ने शिव के अवतार हनुमान को जन्म दिया I
विष्णु पुराण और नारद पुराण की कथानुसार नारद एक राजकुमारी पर मोहित होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें अपने जैसा रूप देने के लिए कहा ताकि स्वयंवर में राजकुमारी उनका वरण कर सके I उन्होंने विष्णु से हरि मुख की मांग की I हरि भगवान विष्णु का ही दूसरा नाम है I प्रहसन में विष्णु भगवान ने नारद को एक वानर का चेहरा दे दिया, जिसे देखे बगैर नारद स्वयंवर में पहुंच गए I स्वयंवर में एक वानर को देख पूरे दरबार में हंसी के ठहाके लगने लगे I नारद यह अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने विष्णु को श्राप दिया कि एक दिन विष्णु एक वानर पर निर्भर होंगे I
हालांकि बाद में विष्णु जी ने नारद से कहा कि उन्होंने जो कुछ किया, उनकी भलाई के लिए ही किया था I नारद अपनी शक्तियों को कम किए बिना वैवाहिक जीवन में प्रवेश नहीं कर सकते थे I ये जानने के बाद नारद अपना श्राप वापस लेना चाहते थे, लेकिन विष्णु ने कहा कि उनका यही श्राप एक दिन वरदान बन जाएगा I कालांतर में हनुमान का जन्म होगा जो भगवान शिव का ही रूप होंगे और उनकी सहायता लेकर प्रभु श्रीराम रावण का वध करेंगे I
तंत्र-मंत्र में हनुमान की पूजा एक शिर, पंचशिर और एकादश शिर, संकटमोचन, सर्व हितरत और ऋद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में होती है I आनंद रामायण के अनुसार हनुमान जी की गिनती आठ अमर देवों में होती है I अन्य सात अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, नारद, परशुराम और मार्कण्डेय हैं I
हनुमान जी का जन्म नहीं हुआ था, वे प्रगट हुए थे :
वाल्मीकि रामायण के अनुसार महावीर हनुमान का जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था,बल्कि वे एक गुफा में दिव्य रुप से पाये गये थेI इस श्लोक से यह स्पष्ट हो जाता है –
एवम् उक्ता ततः तुष्टा जननी ते महाकपेः| गुहायाम् त्वाम् महाबाहो प्रजज्ञे प्लवगर्षभ ||
अर्थ – हे महाकपि हनुमान I जब पवनदेव के वरदान को तुम्हारी माता ने सुना तो वो प्रसन्न और अनुग्रहित हो गईं I तब तुम्हारी मां ने दिव्य रुप से तुम्हें गुफा में पाया I
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त श्लोक में वर्णित ‘प्रजज्ञ’ शब्द के गहरे अर्थ है I ‘प्रजज्ञ’ और ‘प्रजनन’ में अंतर होता है I ‘प्रजज्ञ’ का अर्थ होता है पाया जाना I यानी हनुमान जी का जन्म नहीं हुआ था I वो पाये गए थे या प्रगट हुए थे या फिर दैविक रुप से उनका आगमन हुआ था I
हनुमान जी का जन्म स्थान :
महावीर हनुमान जी का जन्म किस स्थान पर हुआ था, इसको लेकर काफी मतभेद हैं I हनुमान जी के जन्म स्थान को लेकर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों के बीच काफी विवाद हैं I हर एक राज्य का कहना है कि हनुमान जी का जन्म उनके ही राज्य में हुआ था I
हनुमान जी का जन्म किस राज्य में हुआ था :
हनुमान जी के जन्म स्थान के विषय में वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट कुछ नहीं लिखा गया है, जिससे उनके जन्म स्थान को आज के किसी आधुनिक राज्य में ठीक प्रकार से स्थापित किया जा सके I हाल में ही कुछ विद्वानों के द्वारा यह कहा गया है कि हनुमान जी का जन्म ‘गोकर्ण’ के पास हुआ था जो कर्नाटक के समुद्र तट के पास स्थित है I कर्नाटक राज्य के ही कुछ लोगों का दावा है कि किष्किंधा राज्य आधुनिक कर्नाटक के हंपी के पास स्थित था I हंपी के पास ही स्थित आंजनेरी अंजनाद्रि पर्वत की एक गुफा में हनुमान जी का जन्म हुआ था I
यह सत्य है कि किष्किंधा में वानरराज सुग्रीव और बाली का राज था, लेकिन हनुमान जी के पिता केसरी किसी और राज्य के राजा थे I केसरी का राज्य कहां स्थित था, ये कोई निश्चित रुप से नहीं जानता I वैसे भी सुग्रीव ने श्रीराम की सहायता के लिए पूरी पृथ्वी से वानरों को बुलाया था I केसरी भी किसी दूरस्थ राज्य के राजा रहे होंगे, जो किष्किंधा से बहुत दूर शायद उत्तर या पूर्वी भारत में स्थित हो I लेकिन, यह तय है कि हनुमान जी का जन्म एक गुफा में ही हुआ था I अब यह गुफा किस राज्य में स्थित थी, इसको लेकर अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग वर्णन हैं I
सुमेरु पर्वत पर हुआ था हनुमान जी का जन्म :
अगर वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड पर दृष्टि डालें, तो वह गुफा सुमेरु पर्वत के पास हो सकती है I वाल्मीकि रामायण के अनुसार सुमेरु पर्वत के पास वानरराज केसरी का राज्य स्थित था I हो सकता है कि वहीं किसी अन्य पर्वत पर माता अंजना जब जा रही थीं,तब वायुदेव के वरदान से हनुमान जी का जन्म हुआ हो I उल्लेखनीय है कि वाल्मीकि रामायण और अन्य ग्रंथों में सुमेरु पर्वत एक नहीं कई स्थानों पर बताए गए हैं I अब सूर्यदेव ने जिस सुमेरु पर्वत को वरदान दिया था वो किस स्थान पर है, इसे लेकर निश्चित रुप से कहा नहीं जा सकता I कुछ जानकारों का कहना है कि ब्रह्मांड पुराण, वाराह पुराण आदि में जिस पर्वत क्षेत्र का वर्णन है वो आधुनिक आंध्र प्रदेश के तिरुमाला पर्वत के पास स्थित है I महाराष्ट्र राज्य का दावा है कि हनुमान जी का जन्म नासिक जिले के त्र्यम्बकेश्वर के पास अंजनेरी पर्वत के पास हुआ था I
क्या हनुमान जी दक्षिण भारतीय हैं :
ऐसी सामान्य मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म दक्षिण भारत में हुआ था और इसलिए उन्हें दक्षिण भारतीय कहना गलत नहीं होगा I इस बात पर ज्यादातर लोग सहमत हैं कि हनुमान जी का जन्म दक्षिण भारत के किसी स्थान पर हुआ था I हनुमान जी और श्रीराम जी का पहली बार आमना-सामना भी दक्षिण भारत मे ही हुआ था I श्री राम माता जानकी की खोज में दक्षिण भारत की तरफ आगे बढ़े थे I जब वे पंपा सरोवर के पास ऋष्यमुख पर्वत के पास पहुंचे, तब उन्हें देख कर सुग्रीव ने श्रीराम के पास हनुमान जी को दूत बना कर भेजा था I
बालि और सुग्रीव का राज्य :
किष्किंधा आज के आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के क्षेत्रों तक फैला हुआ था I लेकिन, क्या सारे वानर एक ही स्थान पर रहते थे? अगर वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड को ध्यान से पढ़ें, तो पता चलता है कि वानरों का राज सारे पृथ्वी के जंगलों और पर्वतों तक फैला हुआ था I वानरराज केसरी किसी अन्य स्थान के राजा थे, तो नल, नील, द्विद, मयंद आदि वानर भी किसी न किसी दूसरे राज्य से संबंध रखते थे I हां, यह सत्य है कि सभी वानर राजा मुख्य रुप से सुग्रीव या बाली को ही अपना प्रधान मानते थे I इसलिए जब सुग्रीव ने सभी वानरों को श्रीराम की सहायता के लिए बुलावा भेजा तो केसरी सहित सारी पृथ्वी पर फैले वानर राजा अपनी सेनाओं के साथ आए I इस तर्क से यह स्थापित करना बहुत कठिन है कि हनुमान जी के पिता किष्किंधा के पास के ही कोई राजा थे और हनुमान जी का जन्म इसी तर्क के अनुसार दक्षिण भारत में ही हुआ था I
बहरहाल, श्रीराम भक्त हनुमान के जन्म को लेकर भारत के कई राज्यों के अलग-अलग दावे हैं I
जन्म स्थान का पहला मत :
बजरंग बली के पिता केसरी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल किसी समय करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि कैथल ही हनुमानजी का जन्म स्थान है। यहां हनुमानजी का बहुत बड़ा मंदिर भी स्थित है।
जन्म स्थान का दूसरा मत :
गुजरात स्थित डांग जिला रामायण काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था। मान्यता के अनुसार यहीं भगवान राम व लक्ष्मण को शबरी ने बेर खिलाए थे। आज यह स्थल शबरी धाम के नाम से जाना जाता है। अंजनी पर्वत पर स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि अंजना माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न यानी हनुमान जी की प्राप्ति हुई थी। माता अंजना ने अंजनी गुफा में ही हनुमानजी को जन्म दिया था। परंतु पौराणिक आख्यान और विभिन्न राम कथाओं में वर्णित राम गमन पथ से गुजरात में शबरी के होने की बात मेल नहीं खाती है I दूसरे दंडकारण्य भी गुजरात में नहीं था I
जन्म स्थान का तीसरा मत :
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के गुमला जिला के आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। आंजन गांव में ही माता अंजनी निवास करती थीं और इसी गांव की एक पहाड़ी पर स्थित गुफा में रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ था। इसी विश्वास के साथ यहां की जनजाति भी बड़ी संख्या में भक्ति और श्रद्धा के साथ माता अंजना और भगवान महावीर की पूजा करते हैं।
जन्म स्थान का चौथा मत :
पंपासरोवर अथवा पंपासर होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर शबरी गुफा कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि का आश्रम था और कहते हैं कि इसी आश्रम में बजरंगबली जन्मे थे।
क्यों कहलाए हनुमान :
इसके पीछे का रहस्य हनुमान जी के बाल्य अवस्था की एक कथा से जुड़ा हुआ है। जैसे कि हम सभी जानते हैं हनुमान जी भगवान शिव के अवतार हैं और इन्हें अष्ट सिद्धियां और नौ निधियां प्राप्त हैं। इस कारण से हनुमानजी की शक्तियां बहुत अधिक मानी गई हैं। यह उस समय की बात है जब हनुमान जी छोटे बालक थे I उन्हें बहुत जोरों की भूख लगी। उन्होंने फल समझकर अपनी शक्ति के बल पर सूर्य देव को निगल लिया था। हनुमानजी जब सूर्यदेव को निगल रहे थे तब वहां पर पहले से राहु मौजूद था I वह भी सूर्यदेव को अपना ग्रास बनाना चाहता था। हनुमानजी द्वारा सूर्य को निगलते देख कर राहु ने यह बात देवराज इंद्र को जाकर बताई। राहु की बात सुनकर इंद्रदेव क्रोधित हो गए और हनुमानजी को दंड देने के लिए उन पर वज्र से प्रहार किया। वज्र के प्रहार से हनुमान जी को ठुड्डी में चोट लगी और वे बेहोश हो गए। जब यह बात पवनदेव को मालूम पड़ी कि उनके पुत्र पर इंद्र ने वज्र से प्रहार किया है, तो उन्होंने क्रोधित होकर पूरे ब्रह्रांड की प्राण वायु को रोक दिया। समूची सृष्टि की प्राणवायु रुक जाने से सभी लोगों में हाहाकार मच गया। तब ब्रह्राजी ने पवनदेव का समझाते हुए हनुमान जी को जीवनदान दिया। उन्होंने पवन देव को समझाने की गुहार लेकर आए देवताओं से कहा कि यह बालक भविष्य में हम सभी के लिए हितकर होगा। अत: इसे अनेक वरदानों से विभूषित करो। ब्रह्मा जी के निर्देश पर सभी देवताओं ने हनुमान जी को विभिन्न वरदान दिए I
संस्कृत भाषा में ठुड्डी को हनु कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवराज इंद्र के वज्र के प्रहार से बजरंगबली को चोट लगने से उनकी ठुड्डी थोड़ी तिरछी हो गई। इस कारण से भगवान बजरंगबली का नाम हनुमान पड़ा।
हनुमान जी को मिले वरदान :
- इन्द्र ने प्रसन्नता से स्वर्ण के कमल की माला देकर कहा- ‘मेरे वज्र से इसकी हनु टूटी है, अत: यह हनुमान कहलायेगा। मेरे वज्र से यह नहीं मरेगा।’
- सूर्य ने अपना सौंवा भाग हनुमान को दे दिया और भविष्य में सब शास्त्र पढ़ाने का उत्तरदायित्व लिया।
- यम ने बालक हनुमान को अपने दंड से अभय कर दिया कि वह यम के प्रकोप से नहीं मर पायेगा I
- वरुण ने दस लाख वर्ष तक वर्षादि में नहीं मरने का वर दिया।
- कुबेर ने अपने अस्त्र-शस्त्रों से निर्भय कर दिया।
- महादेव ने किसी भी अस्त्र से न मरने का वर दिया।
- ब्रह्मा ने हनुमान को दीर्घायु बताया और ब्रह्मास्त्र से न मरने का वर दिया। साथ ही यह वर भी प्रदान किया कि वह इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ होगा।
- विश्वकर्मा ने अपने बनाये अस्त्र-शस्त्रों से उसे निर्भय कर दिया।
वर-प्राप्ति के उपरांत हनुमान उद्धत भाव से घूमने लगे। यज्ञ करते हुए मुनियों की सामग्री बिखेर देते या उन्हें तंग करते। पिता वायु और केसरी के रोकने पर भी वे रुकते नहीं थे। अंगिरा और भृगुवंश में उत्पन्न ऋषियों ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप दिया कि ये अपने बल को भूल जायें और जब कोई उन्हें फिर से याद दिलाए तब उनका बल बढ़े।
तीन पत्नियों के बाद भी हनुमान जी क्यों कहलाते हैं बाल ब्रह्मचारी :
हनुमान जी को बाल ब्रह्मचारी माना जाता है I लेकिन कई ग्रंथों एवं पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हनुमान जी ने तीन विवाह किये थे। ऐसे में फिर कैसे हनुमान जी ब्रह्मचारी कहलाए, जानते हैं इस बारे में :
हनुमान जी को हिन्दू धर्म में बाल ब्रह्मचारी माना गया है। रामयाण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि हनुमान जी ने अपना जीवन राम भक्ति के लिए समर्पित किया है। वहीं कुछ ग्रंथों में यह भी बात सामने आई है कि हनुमान जी विवाहित थे। हनुमान जी ने तीन-तीन शादियां की थी I ऐसे में फिर कैसे हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हुए।
कौन थीं हनुमान जी की पत्नियां :
हनुमान जी की पहली पत्नी सुवर्चला थीं I वे सूर्य देव की पुत्री थीं। हनुमान जी की दूसरी पत्नी अनंगकुसुमा थीं, जो वरुण देव की पुत्री थीं। हनुमान जी की तीसरी पत्नी थी सत्यवती जो रावण की पुत्री की पुत्री यानी दोहित्री थीं।
कैसे हुआ था हनुमान जी का विवाह :
पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी के गुरु सूर्य देव थे I सूर्य देव ने हनुमान जी को अष्ट सिद्धियों का ज्ञान दिया था। हालांकि नव निधियां सिखाने में सूर्य देव को कठिनाइयां आने लगीं। नव निधियां सीखने के लिए हनुमान जी का विवाहित होना जरूरी था। ऐसे में सूर्य देव ने अपने तेज से एक कन्या को प्रकट किया। उस कन्या से हनुमान जी का विवाह किया और उन्हें नव निधियों का ज्ञान दिया I
हनुमान जी ने विवाह के बाद भी ब्रह्मचर्य का पालन किया। देवी सुवर्चला घोर तप के बाद सूय ऊर्जा में ही समा गईं। ठीक ऐसे ही हनुमान जी के अन्य विवाह भी विद्या प्राप्ति के लिए हुए थे।
क्यों कहलाते हैं हनुमान जी ब्रह्मचारी :
तीनों विवाह के बाद भी हनुमान जी ने ब्रह्मचर्य का पालन किया I वहीं हनुमान जी की तीनों पत्नियां तप कर विलीन हो गईं।
यही कारण है कि हनुमान जी विवाह के बाद भी ब्रह्मचारी कहलाते हैं।
हालांकि हनुमान जी के विवाह के बारे में रामायण में कुछ भी उल्लेखित नहीं। मगर हनुमान जी को उनकी पत्नी के साथ तेलंगाना में पूजा जाता है। इसके अलावा, ग्वालियर में भी हनुमान जी तीनों पत्नियों के साथ स्थापित हैं। यहां तक कि उनके पुत्र मकरध्वज की प्रतिमा भी इस मंदिर में मौजूद है।
हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा :
महर्षि वाल्मीकि के रामायाण में बताया गया है कि हनुमान जी का एक पुत्र भी था। वाल्मीकि रामायण में इससे संबंधित प्रसंग के अनुसार पाताल लोक के असुरराज अहिरावण ने भाई रावण के कहने पर प्रभु राम और लक्ष्मण को बंदी बना लिया था। वह प्रभु राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेकर चला गया था। तब हनुमान जी राम और लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक पहुंच गए। वहां अपने जैसे पहरेदार को देखकर वे अचंभित हो गए। हनुमान जी की तरह दिखाई देने वाले पहरे पर खड़े हुए मकरध्वज ने स्वयं को हनुमान का पुत्र बताया। हनुमान जी इस बात को मानने को तैयार नहीं हुए, तो मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई।
मकरध्वज ने हनुमान जी से कहा कि आप जब माता सीता की खोज में लंका पहुंचे। आपको मेघनाद द्वारा पकड़कर रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। वहां पर रावण ने आपकी पूंछ में आग लगवा दी थी, जिसके बाद आप अपनी जलती पूंछ की आग बुझाने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे। आग बुझाते हुए आपके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी, जिसे एक बड़ी मछली ने पी लिया था। उसी एक बूंद की वजह से वह मछली गर्भवती हो गई।
एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने खाने के लिए उस मछली को पकड़ लिया। लेकिन जब उसका पेट चीर रहे थे, तभी उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला, जो कि मैं था। सेवक बालक को अहिरावण के पास लेकर गए। अहिरावण ने मुझे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। वह मैं ही हूं, जो मकरध्वज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया। इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया। हनुमान जी ने मकरध्वज को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
क्यों धरा पंचमुखी हनुमान का रूप :
ऐसा कहा जाता है कि भगवान हनुमान ने राम और लक्ष्मण का अपहरण करने वाले पाताल के राजा अहिरावण को मारने के लिए पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया था। हनुमान को इस बात का पता लगा कि अहिरावण को मारने के लिए उनको एक ही समय में पांच दीपकों को बुझाने की जरूरत है, क्योंकि उनके भीतर उसकी आत्मा रहती है। इसलिए हनुमान जी पांच सिरों में रूपांतरित हो गए। पंचमुखी हनुमान के रूप में केंद्र में हनुमान जी मौजूद थे। दक्षिण में नरसिंह जी थे , पश्चिम में गरुड़ जी, उत्तर में वाराह का सिर और आकाश के सामने एक घोड़े का सिर था।