World Bank: ‘सिंधु जल संधि मसले पर विश्व बैंक की भूमिका मध्यस्थ से ज्यादा कुछ नहीं’, अध्यक्ष अजय बंगा का बयान

थर्ड आई न्यूज

नई दिल्ली। विश्व बैंक के प्रमुख अजय बंगा ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि में विश्व बैंक की मध्यस्थ बनने के अलावा कोई भूमिका नहीं है। बंगा ने यह भी स्पष्ट किया अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की ओर से समझौते के निलंबन को ठीक करने के लिए कोई कदम नहीं उठाएगा।

भारत और पाकिस्तान ने नौ साल तक बाचतीत के बाद 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि में विश्व बैंक की मदद ली गई थी। विश्व बैंक ने भी इस पर हस्ताक्षर किए थे। प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) ने बंगा के हवाले से कहा, हमारी भूमिका केवल मध्यस्थ की है। मीडिया में इस बारे में बहुत अटकलें लगाई जा रही हैं कि विश्व बैंक किस तरह से इस समस्या का समाधान करेगा। यह सब बकवास है। विश्व बैंक की भूमिका केवल एक मध्यस्थ की है।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने 22 अप्रैल को हमला किया। इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई, जिनमें अधिकांश पर्यटक थे। इसके बाद भारत ने सिंधु जल संधि को तब तक के लिए निलंबित कर दिया, जब तक पाकिस्तान विश्वसनीय रूप से सीमा पार आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं कर देता।

बंगा ने गुरुवार शाम राष्ट्रीय राजधानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इसके तुरंत बाद ऐसी अटकलें लगाई जाने लगीं कि विश्व बैंक मामले में दखल देगा। इसके अलावा, विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने गुरुवार शाम इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान ने पिछले कई वर्षों में जानबूझकर कानूनी बाधाएं पैदा करके सिंधु जल संधि का बार-बार उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि यह भारत का ही धैर्य है कि पिछले 65 वर्षों से भारत संधि का पालन कर रहा है।

मिस्री ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, भारत लगातार सिंधु जल संधि में बदलाव पर चर्चा करने के लिए बातचीत करने की कोशिश कर रहा है। पिछले ढाई वर्षों से भारत पाकिस्तान सरकार के साथ संवाद कर रहा है। हमने संधि में संशोधन पर चर्चा करने के लिए बातचीत का अनुरोध करते हुए उन्हें कई नोटिस भेजे हैं। भारत छह दशकों से अधिक समय से संधि का सम्मान करता रहा है। यहां तक कि उस अवधि के दौरान भी भारत ने संधि का सम्मान किया, जब पाकिस्तान ने हम पर कई युद्ध थोपे थे। पाकिस्तान संधि का उल्लंघन कर रहा है, जानबूझकर भारत के लिए कानूनी बाधाएं पैदा कर रहा है, पश्चिमी नदियों पर अपने वैध अधिकारों का प्रयोग कर रहा है। यह भारत का ही धैर्य है कि इतने उकसावे के बाद भी हम पिछले 65 वर्षों से संधि का पालन कर रहे हैं।

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