धनतेरस धन्वंतरि जयंती है, इसका धन, लक्ष्मी और कुबेर से कोई लेना-देना नहीं
प्रमोद तिवाड़ी
थर्ड आई न्यूज
आज धनतेरस है. सोशल मीडिया का युग है. लिहाजा सुबह से ही सभी के मोबाइल फोन पर धनतेरस की फोटो सहित बधाइयों का निश्चित रूप से तांता लगा हुआ होगा. इन बधाई संदेशों में अधिकांशतः माता लक्ष्मी एक धन कलश से सोने के सिक्के बरसाती हुई दिखती हैं. जबकि, कुछे लोग टेक्स्ट मैसेज के जरिए धन के देव कुबेर एवं माता लक्ष्मी के कृपा बरसाने की विश की है .
उनके इतने सारे भक्ति मैसेज देखकर मन स्वतः ही भक्तिभाव में लीन हो गया. साथ ही, थोड़ा दुःख भी हुआ कि लोग अपने पर्व-त्योहार पर उत्साहित तो रहते हैं लेकिन उसका प्रयोजन नहीं जान पाते.
लेकिन, वास्तव में गलती उनकी भी नहीं है क्योंकि लोग उसी परंपरा का पालन करते हैं जिसे वे जन्म से देखते आये हैं. इस परंपरा से संबंधित एक कहानी याद आती है, जिसे शेयर करना उपयुक्त जान पड़ रहा है.
एक गांव में एक अंधा आदमी और उसकी पत्नी रहा करते थे. अब वो पुराने दौर का गांव था और लाइट वगैरह की ज्यादा व्यवस्था नहीं थी तो लालटेन की रोशनी में खाना बनाया जाया था. लेकिन एक छोटी-सी समस्या यह थी कि जब उसकी पत्नी खाना बनाती थी तो खाना बनाते समय हमेशा एक बिल्ली किचन में घुस आती थी और डिस्टर्ब करती थी, जिसे बार बार भगाना पड़ता था. इस समस्या से निपटने के लिए पत्नी ने एक उपाय निकाला और अपने पति को बताया. चूंकि, अंधा होने की वजह से वो बिल्ली को देख पाने अथवा उसे भगा पाने में असमर्थ था, इसीलिए पत्नी की योजना अनुसार जब वो किचन में खाना बनाए तो उसका पति हाथ में एक डंडा लेकर किचेन के पास बैठे और, वो उस डंडे को जमीन को पटक कर “ठक-ठक” की आवाज निकालता रहे, जिससे कि बिल्ली किचन में न आने पाए.
समझाने के बाद उसका पति ऐसा ही करने लगा और उस ठक- ठक की आवाज से डर कर बिल्ली का किचन में आना बंद हो गया. इस दौरान घर के जो छोटे बच्चे थे वे बड़े हो गए और नए बच्चों ने भी जन्म लिया. घर के बच्चों ने जन्म से ही देखा कि जब घर में मम्मी खाना बनाती है तो पिता जी किचेन के पास बैठ कर डंडे से “ठक – ठक” की आवाज निकालते हैं. फिर, जब उन बच्चों की भी शादी हुई तो उन्होंने भी इस परंपरा को जारी रखा और जब उनकी पत्नियाँ खाना बनाती थीं तो वो किचेन के पास बैठकर किसी डंडे से ठक-ठक की आवाज निकालते थे. कालांतर में उनके भी बच्चे हुए और उनमें से कुछ लोग अमेरिका , फ्रांस आदि में जाकर बस गए. व्यस्तता की वजह से खाना बनाते समय उनके लिए किचेन के पास बैठ ठक – ठक की आवाज निकालना संभव नहीं रह गया. इसीलिए, उन्होंने एक ऐसी मशीन बनवा ली जो स्विच ऑन करने पर डंडे से ठक ठक की आवाज निकालती थी. घर में खाना बनते समय वे इस मशीन को ऑन कर दिया करते थे ताकि उनकी पारिवारिक परंपरा कायम रह सके.
कहने का मतलब कि एक सामान्य-सी घटना अनजाने में ही पारिवारिक परम्परा बन गई.अगर समय रहते इसकी वैज्ञानिकता को समझा गया होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती.
कुछ ऐसा ही धनतेरस के साथ है.आज सनातन हिन्दुओं के धनतेरस का त्योहार है. भले ही धनतेरस दीपावली के दो दिन पहले मनाया जाता है तथा धनतेरस के नाम में “धन” शब्द जुड़ा हुआ है, लेकिन धनतेरस का धन की देवी माँ लक्ष्मी अथवा कुबेर से कोई संबंध नहीं है. धनतेरस के नाम में “धन” से उतना ही संबंध है,जितना कि सोनिया गांधी अथवा राहुल गांधी का महात्मा गांधी से है.
असल में धनतेरस माँ लक्ष्मी की पूजा के लिए नहीं मनाया जाता है. धनतेरस का ये महापर्व आरोग्य के देवता “धनवंतरी” की याद में मनाया जाता है. धनतेरस शब्द में “धन” माता लक्ष्मी के कारण नहीं बल्कि “धनवंतरी” से लिया गया है. चूंकि यह महापर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के “त्रयोदशी” को मनाया जाता है इसीलिए इसमें “तेरस” शब्द आता है. ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान आज के ही दिन आरोग्य के देवता “धनवंतरी” हाथ में अमृत भरे कलश लेकर प्रकट हुए थे. उन्हीं के याद में आज हिन्दू सनातनधर्मी धनतेरस का महापर्व मनाते हैं.
आज के दिन एक न एक पात्र (बर्तन) खरीदने की परंपरा है. वह पात्र इस आस्था और विश्वास के साथ खरीदा जाता है कि हमारे इस पात्र में भी अमृत की कुछ बूंदे मौजूद रहेंगी. इससे हम तथा हमारे परिवार आरोग्य के देवता भगवान धनवंतरी की कृपा से हमेशा स्वस्थ रहेंगे. सनातन हिन्दू संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान हमेशा ही धन से ऊपर माना जाता रहा है.यह कहावत आज भी प्रचलित है कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’. इसलिए, दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है.
बहरहाल, किचन के पास बैठ कर डंडे से ठक ठक की आवाज निकालने के तौर पर आजकल अनजाने में लोग धनतेरस के उपलक्ष्य में कार, बाइक्स, स्टील की आलमारी वगैरह बहुतायत में खरीदते हैं. लेकिन, शास्त्रानुसार धनतेरस के दिन लोहे का सामान, स्टील के बर्तन, प्लास्टिक की वस्तुएं एवं कोई धारदार सामान खरीदने से परहेज करना चाहिए.
लोहे का संबंध शनि ग्रह से माना जाता है और स्टील को राहु ग्रह का प्रतीक माना जाता है. उसी तरह प्लास्टिक, चीनी मिट्टी एवं कांच के सामान को भी राहु का प्रतीक मानकर उसे खरीदे जाने से वर्जित किया गया है. इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण ये हो सकता है कि लोहा, स्टील, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी आदि (खासकर इन मेटल्स के बर्तन/प्लेट्स) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं. वहीं धारदार चीज से कोई इंज्युरी हो सकती है. इसीलिए, इन्हें खरीदने को वर्जित किया गया होगा क्योंकि जब खरीदेंगे नहीं तो ऐसी चीजों का प्रयोग भी नहीं करेंगे और हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा. धनतेरस के दिन सोना, चांदी, तांबे, कांसे और पीतल के बर्तन खरीदने शुभ माने गए हैं.
साथ ही साथ आज झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है. झाड़ू इसीलिए शुभ माना जाता है क्योंकि साफ सफाई तो झाड़ू से ही होनी है. झाड़ू /साफ सफाई के बिना तो अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती.
इसीलिए परंपरा का पालन अवश्य करना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी बेहद जरूरी है कि हम ये जानें कि आखिर ये परम्परा है क्यों और उसका क्या वैज्ञानिक कारण है. खैर… ज्ञान और वैज्ञानिकता से इतर आज सभी सनातनी हिन्दू मित्रों को हमारे महापर्व धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ. भगवान धनवंतरी आपको एवं आपके परिवार को हमेशा स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त रखें.